Monday, October 2, 2023

राजभाषा नीति संबंधी आदेश

राजभाषा नीति संबंधी आदेश

सामान्‍य आदेश की परिभाषा

स्‍थायी प्रकार के सभी आदेश निर्णय, अनुदेश, परिपत्र जो विभागीय प्रयोग के लिए हों तथा ऐसे सभी आदेश, अनुदेश, पत्र, ज्ञापन, नोटिस आदि जो सरकारी कर्मचारियों के समूह अथवा समूहों के संबंध में या उनके लिए हों, राजभाषा अधिनियम की धारा 3(3) के अधीन सामान्‍य आदेश कहलाते हैं ।

 क्षेत्र में चैक/ड्राफ्ट हिंदी में तैयार किया जाना

 क्षेत्र में स्थित केंद्रीय सरकार के कार्यालयों द्वारा सभी चैक यथासंभव हिंदी में तैयार किए जाएं । क क्षेत्र में स्थित सरकारी बैंकों द्वारा  क्षेत्र के लिए तैयार किए गए चैक और ड्राफ्ट यथासंभव हिंदी में जारी किए जाएं ।

लिफाफों पर पते हिंदी में लिखना और पता लिखने, बिल बनाने आदि में मशीनों का प्रयोग

 तथा  क्षेत्र में स्‍थित कार्यालयों में पता लेखी-मशीन के साथ देवनागरी एम्‍बोसिंग मशीनें लगाई जाएं और चूँकि  क्षेत्रों में स्थित कार्यालयों में भी कई बड़े-बड़े कार्यालय ऐसे हैं जिनमें काफी पत्र-व्‍यवहार  तथा  क्षेत्र के कार्यालयों से होता है अतः  क्षेत्र में स्थित कार्यालयों में भी द्विभाषी पता लेखी मशीनों का प्रावधान किया जाये ।

नाम पट्ट, रबड की मोहरें, कार्यालय की मुद्राएं, पत्र शीर्ष और लोगो (प्रतीक)

  1. भारत सरकार के सभी मंत्रालयों/विभागों तथा अन्‍य कार्यालयों में प्रयोग में आने वाली सभी रबड़ की मोहरें और कार्याल्‍य की मुद्राएं द्विभाषिक रूप में हिंदी के शब्‍द ऊपर रखते हुए प्रयोग की जाएं ।
  2. पदनाम, कार्यालय का नाम, पता आद के बारे में जो मोहरें वर्तमान आदेशों के अनुसार द्विभाषी रूप में बनाई जाती है , वे इस प्रकार बनाई जाएं कि उनमें एक पंक्ति हिंदी की और फिर एक पंक्ति अंग्रेजी की हो या एक ही पंक्ति में हिंदी और उसके बाद अंग्रेजी में लिखा हो । ये निदेश बनाई जाने वाली मोहरों पर लागू किए जाएं ।
  3. जो मोहरें टिप्‍पणी आदि की जगह बनाई जाती हैं वे या तो द्विभाषाी बनाई जाएं या  तथा  क्षेत्र के कार्यालयों आदि में केवल हिंदी में और  क्षेत्र के कार्यालयों में केवल हिंदी अंग्रेजी में बनवा ली जाएं ।
  4. रबड़ की मोहरें तैयार करते समय सभी भाषाओं के अक्षर समान आकार के होने चाहिए ।
  5.  तथा  क्षेत्रों में स्थित कार्यालयों में नाम पट्ट रबड़ की मोहरें, पत्र शीर्ष, लोगो (प्रतीक) आदि द्विभाषी रूप में बनवाए जाएं ।

नाम पट्टों, रबड़ मोहरों आदि पर देवनागरी रूप में नाम लिखने की विधि 

देवनागरी के नाम पट्टों, मोहरों, आदि पर पूरा नाम तो एक रीति से लिख जा सकता है, परन्‍तु संक्षिप्‍त नाम लिखने के लिए अनेक पद्धतियां प्रचलित हैं । उदाहरण के लिए यदि किसी व्‍यक्ति का नाम दीनानाथ शर्मा है, तो देवनागरी लिपि में उसका संक्षिप्‍तम नाम दिए हुए विकल्‍प में से किसी एक के अनुसार लिखा जा सकता हैः-

  1. देवनागरी वर्णमाला के अनुसार, मात्राओं का प्रयोग करते हुए, आद्य अक्षर लिख कर जैसे, दी.ना.शर्मा ।
  2. देवनागरी वर्णमाला के अनुसार, बिना मात्रओं के प्रयोग के आद्य अक्षर लिखकर जैसे द.न.शर्मा ।
  3. नाम के आद्य अक्षर रोमन वर्णमाला के अनुसार देवनागरी लिपि में लिखकर जैसे डी.एन.शर्मा ।

सम्‍मेलनों में साइन बोर्डों के लिए हिंदी और अंग्रेजी दोनों का प्रयोग

विभिन्‍न मंत्रालयों द्वारा आयोजित सभी सम्‍मेलनों और बैठकों में विशेषकर दिल्‍ली में सभी साइन बोर्डों आदि पर दोनों भाषाओं का प्रयोग होना चाहिए ।

सरकारी समारोहों के लिए निमंत्रण पंत्र

सभी सरकारी समारोहों के निमंत्रण पत्र हिदी और अंग्रेजी में जारी किए जाएं । कार्ड के एक ओर अंग्रेजी होनी चाहिए और दूसरी ओर हिंदी । आवश्‍यकता के अनुसार इनमें हिंदी और अंग्रेजी के अतिरिक्‍त प्रादेशिक भाषाओं का भी उपयोग किया जा सकता है । त्रिभाषिक निमंत्रण-पत्र किस प्रकार छापे जाएं, यह बात संयोजक पर छोड़ दी गई है ।

फाइल कवरों पर विषय हिंदी में

मंत्रालयों/विभागों और हिंदी भाषी क्षेत्रों में स्थित संबद्ध व अधीनस्‍थ कार्यालयों में निम्‍नलिखित प्रकार की सभी फाइलों के फाइल कवरों पर विषय हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में लिखे जाएं :

1. जिन फाइलों में टिप्पण तथा पत्र हिंदी में हैं ।

2. उन अनुभागों की फाइलों पर जिनमें 80 प्रतिशत या ज्‍यादा कर्मचारी हिंदी जानते हैं ।

3. हिंदी जानने वाले या हिंदी में प्रशिक्षित कर्मचारियों द्वारा निपटाई जाने वाली फाइलें ।

अन्‍य मामलों में भी जहां तक हो सके स्‍वैच्छिक रूप से इसी प्रकार की पद्धति अपनाई जाए । अहिन्‍दी भाषी क्षेत्रों में स्थित संबद्ध और अधीनस्‍थ कार्यालयों में हिंदी जानने वाले या हिंदी सीखे हुए कर्मचारियों की उपलब्‍धता के आधार पर यह पद्धति अपनाई जाए ।

स्‍टाफ कार की प्‍लेटों पर नाम

मंत्रालयों/विभागों और हिंदी भाषी क्षेत्रों में स्थित संबद्ध और अधीनस्‍थ कार्यालयों में स्‍टाफ कारों की प्‍लेटों पर कायालयों के नाम अंग्रेजी और हिंदी दोनो भाषाओं में लिखवाएं जाएं । हिंदी में नाम ऊपर हो और अंग्रेजी में उसके नीचे ।

प्रदर्शनियों में हिंदी का प्रयोग

हिंदी भाषी क्षेत्रों में या उन क्षेत्रों में जहां की अधिकांश जनता हिंदी समझती है, प्रदर्शनियों में प्रचार माध्‍यम के रूप में हिंदी का अधिकाधिक इस्‍तेमाल किया जाए । इन क्षेत्रों में प्रदर्शनियों में प्रचार सामग्री भी यथासंभव हिंदी में उपलब्‍ध कराइ जाए । ट्रेड फेयर अथारिटी आफ इंडिया द्वारा आयोजित प्रदर्शनियों में भाग लेने वाली सरकारी तथा सार्वजनिक क्षेत्र के संस्‍थानों द्वारा प्रदर्शनियों आदि में हिंदी का उपयुक्‍त प्रयोग किया जाए और अपने मंडपों में वस्‍तुओं के नाम /परिचय आदि देने में हिंदी का समुचित प्रयोग किया जाए ।

मैनुअलों, फार्मों, कोडों आदि की हिंदी-अंग्रेजी द्विभाषी (डिगलॉट रूप में) छपाई

मैनुअलों, फार्मों, कोडों आदि की हिंदी-अंग्रेजी (डिगलॉट रूप में) द्विभाषी छपवाए जाएं । फार्मों उपक्रमों, राष्‍ट्रीयकृत बैंकों आदि द्वारा केवल अंग्रेजी के फार्म ही प्रयोग में लाए जा रहे हैं, जो कि राजभाषा नियम 1976 के नियम 11 के अनुदेशों के प्रतिकूल हैं ।

इस संबंध में राजभाषा नियम 12 की ओर ध्‍यान आकृष्‍ट किया जाता है जिसके अंतर्गत प्रत्‍येक कार्यालय के प्रशासनिक प्रधान का उत्तरादायित्‍व है कि वह राजभाषा अधिनियम और राजभाषा निमय के उपबन्‍धों का समुचित अनुपालन करवाए । अतः सभी मंत्रालयों/विभागों से पुनः अनुरोध है कि वे अपने सभी सम्‍बद्ध /अधीनस्‍थ कार्यालयों, उपक्रमों बैंकों आदि में प्रयोग हो रहे सभी फार्म आदि अनिवार्यतः द्विभाषी रूप में उपलब्‍ध व प्रयोग करना सुनिश्चित करें ।

फार्मों का द्विभाषी उपलब्‍ध करवाना

यह सुनिश्चित किया जाए कि कोई फार्म न तो एक भाषा में छपे, न ही एक भाषा में जारी किया जाय । यदि किसी विशेष स्थिति में कोई फार्म हिंदी तथा अंग्रेजी दोनों भाषाओं में अलग-अलग छपे तो उस फार्म के हिंदी और अंग्रेजी रूपान्‍तर सभी जगह उपलब्‍ध रहने चाहिए और इस बात का ध्‍यान रखा जाना चाहिए कि जनता का कोई व्यक्ति इनमें से जिस भाषा का फार्म मांगे वह फार्म उस भाषा में उसे मिल सके ।

सम्‍मेलनों, बैठकों की कार्यसूची/कार्यसूची की टिप्पणियां / कार्यवृत्त हिंदी-अंग्रेजी द्विभाषी रूप में

मंत्रालयो/विभागों तथा हिंदी भाषी क्षेत्रों में स्थित केन्‍द्रीय सरकार के संबंद्ध तथा अधीनस्थ कार्यालयों और रनके नियंत्रण में या स्‍वामित्‍व में काम करने वाली कंपनियों तथा निगमों की अंतर विभागीय तथा विभागीय बैठकों व सम्‍मेलनों की कार्यसूची, कार्यरूप की टिप्पणियों और कार्यवृत्त को हिंदी तथा अंग्रेजी दोनों भाषाओं में जारी किया जाए । जो विषय बहुत बाद में कार्य सूची में शामिल किए जाने आवश्‍यक है, उनके लिए अपवाद हो सकता है ।

 क्षेत्र में स्थित मंत्रालय/विभागों और कार्यालयों/उपक्रमों आदि की बैठकों की कार्यसूची तथा कार्यवृत्‍त केवल हिंदी में जारी करनाः केवल  क्षेत्र में परिचालित होने वाली कार्यसूची/कार्यवृत्त आदि एवं उससे संबंधित पत्राचार केवल हिंदी में परिचालित किए जा सकते हैं ।

बिल्‍लों पर हिंदी का प्रयोग

केंद्रीय सरकार के अधिकारी / कर्मचारी अपनी सेवा अथवा कार्यालय नाम के बिल्‍ले अंग्रेजी साथ-साथ हिंदी में भी लगाएं । टोपी और कंधे पर लगाए जाने वाले प्रतीक चिह्न और सेवा संबंधी बिल्‍ले जो संगठन और सेवा के प्रतीक होते हैं, केवल देवनागी मैं तैयार किए जा सकते हैं । वर्दियों पर काढ़ेजाने वाले नाम भी दोनों भाषाओं में काढ़े जाएं । यह आदेश केंद्रीय सरकार के सभी राज्‍यों में काम कर रहे वर्दी पहनने वाले कर्मचारियों / अधिकारियों पर लागू होते हैं ।

कर्मचारियों की सेवा पुस्तिकाओं, रजिस्‍टरों में प्रविष्टियाँ

 व  क्षेत्रों में स्थित केंद्रीय सरकार के कार्यालयों में रखे जाने वाले रजिस्‍टरों/सेवा पुस्तिकाओं में प्रविष्टियॉं हिंदी में की जाएं।  क्षेत्र में स्थित कार्यालयों में ऐसी प्रविष्टियॉं यथासंभव हिंदी में की जाएं ।

पियन बुकों में प्रविष्टियाँ

 और  क्षेत्र में स्थित कार्यालयों द्वारा पियन बुक में प्रविष्टियां हिदी में की जाएं ।


Saturday, September 25, 2021

शब्दकोश और संदर्भ ग्रंथों को देखना

 शब्दकोश, संदर्भ ग्रंथों की उपयोग की विधि 11


शब्दकोश, संदर्भ ग्रंथों की उपयोग की विधि और परिचय

शब्दकोश देखने की विधि - 

शब्दकोश में सम्मिलित शब्द वर्णमाला के वर्णों के क्रम में व्यवस्थित रहते हैं। अतः शब्दकोश देखने के पूर्व हमें वर्णमाला के ज्ञान के साथ-साथ शब्द का वर्ण-विच्छेद करना सीखना आवश्यक है।


शब्दकोश में शब्दों को इस वर्ण-अनुक्रम में दिया जाता है- अं, अ, आं, आ, इं, इ, ईं, ई, उं,उ, ऊं, ऊ, ऋ, एं, ए, ऐं, ऐ, ओं, ओ, औं, औ। इसके पश्चात् क से ह तक के वर्ण क्रम के अनुसार।


संयुक्ताक्षरों के विषय में यह बात विशेष ध्यान रखने योग्य है कि यदि मिले हुए वर्ण ऊपर-नीचे लिखे हैं तो ऊपर वाला वर्ण पहले स्थान पाएगा तथा नीचे वाला वर्ण बाद में स्थान पाएगा। एवं संयुक्ताक्षर की मात्रा नीचे वाले वर्ण की मानी जाएगी। जैसे-

1. शुद्धि = ( श्+उ) + (द्+ध्+इ)

2. प्रार्थना = (प्+र्+आ) +(र्+थ्+अ)+(न्+आ)


वर्ण -विच्छेद में मात्रा वाला स्वर सदा ही उस व्यंजन के बाद आता है जिस पर मात्रा लगी हो (भले ही मात्रा पीछे से लगी हो।

जैसे- सि = स्+इ

सी = स्+ई

आधे अक्षरों से पूर्व लिखी ‘इ’ की मात्रा उस अक्षर की न होकर अगले व्यंजन की होती है।

जैसे -स्थिति =स् + थि + ति

यदि मिले हुए वर्ण (संयुक्ताक्षर) ऊपर नीचे न होकर बराबर ऊँचाई पर लिखे हैं तो वर्णों का क्रम वही होगा जो दिखाई दे रहा है।

जैसे - शब्द = श+ब्+द्, पम्प = प+म्+प,  द्वार = द्+वा+र (न कि ‘ व्+दा+र)


निम्नांकित संयुक्ताक्षरों के वर्ण विच्छेद पर विशेष ध्यान दें-

क्ष =क्+ष्+अ           त्र = त्+र्+अ            ज्ञ = ज्+ञ्+अ           द्य=द्+य्+अ


अं तथ अः को स्वरों में नहीं गिना जाता है। अतः शब्दकोश में इनके लिए ओ,औ के बाद अलग से खंड नहीं होता। अनुस्वार ( बिंदु) तथा अनुनासिक (चंद्रबिंदु) वाले वर्ण शब्द कोश में सबसे पहले आएँगे। जैसे - ‘अंकुर’ तथा ‘अकुलाहट’ में से अंकुर पहले स्थान पाएगा, जबकि अकुलाहट बाद में आएगा। इसी प्रकार ‘इ’ तथा ‘इं’ में से इं से प्रारम्भ होने वाले शब्द पहले आएँगे तथा इ से प्रारम्भ होने वाले शब्द बाद में। जैसे -इंक व इकहरा में से इंक पहले आएगा तथा इकहरा बाद में आएगा।

Sunday, August 30, 2020

वचन

 वचन

जिसके द्वारा विकारी शब्द की संख्या का बोध होता है, उसे वचन कहते हैं।


वचन दो प्रकार के होते हैं।


एक वचन

बहुवचन

1. एकवचन

पद के जिस रूप से किसी एक संख्या का बोध होता है, उसे एकवचन कहते हैं।


जैसे - मेरा, तुम्हारा, नदी, वधू, कमरा।


2. बहुवचन

विकारी पद के जिस रूप से किसी की एक से अधिक संख्या का बोध होता है, उसे बहुवचन कहते हैं।


जैसे - लड़के, हमारे, कमरे, नदियां, मिठाइयां।


तथ्य

किसी शब्द के अन्तिम व्यंजन पर जो मात्रा हो वही उसका कारान्त होता है जैसे-


रमा - आकारान्त


अग्नि - इकारान्त


पितृ -ऋकान्तर


(कारक-ने,को,से,में, पर,...)परसर्ग रहित होने पर आकारान्त(रमा,चाचा,माता) शब्दों को छोड़ कर शेष शब्दों का एकवचन व बहुवचन समान रहेगा।


जैसे -अतिथि, हाथी, साधु, जन्तु, बालक, फूल, शेर, पति, मोती, शत्रु, भालू, आलू, चाक।


हिन्दी में निम्न शब्द सदैव एक वचन में ही प्रयुक्त होते हैं-

स्टील, पानी, दूध, सोना, चाँदी, लोहा, आग, तेल, घी, सत्य, झूठ, जनता, आकाश,मिठास, प्रेम, क्रोध, क्षमा, मोह, सामान, ताश, सहायता, वर्षा, जल।


हिन्दी में निम्न शब्द सदैव बहुवचन में ही प्रयुक्त होते हैं-

होश,आँसू, आदरणीय, व्यक्ति हेतु प्रयुक्त शब्द आप,दर्शन, भाग्य, दाम, हस्ताक्षर, प्राण, समाचार, बाल, लोग, होश, हाल-चाल।

Friday, August 7, 2020

राम लक्ष्मण परशुराम संवाद

 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद


प्रश्न 2.

परशुराम के क्रोध करने पर राम और लक्ष्मण की जो प्रतिक्रियाएँ हुईं उनके आधार पर दोनों के स्वभाव की विशेषताएँ अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर-

परशुराम के क्रोध करने पर राम ने अत्यंत विनम्र शब्दों में–धनुष तोड़ने वाला आपका कोई दास ही होगा’ कहकर परशुराम का क्रोध शांत करने एवं उन्हें सच्चाई से अवगत कराने का प्रयास किया। उनके मन में बड़ों के प्रति श्रद्धा एवं आदर भाव था। उनके शीतल जल के समान वचन परशुराम की क्रोधाग्नि को शांत कर देते हैं।


लक्ष्मण का चरित्र श्रीराम के चरित्र के बिलकुल विपरीत था। उनका स्वभाव उग्र एवं उद्दंड था। वे परशुराम को उत्तेजित एवं क्रोधित करने का कोई अवसर नहीं छोड़ते थे। उनकी व्यंग्यात्मकता से परशुराम आहत हो उठते हैं और उन्हें मारने के लिए उद्यत हो जाते हैं जो सभा में उपस्थित लोगों को भी अनुचित लगता है।




प्रश्न 4.

परशुराम ने अपने विषय में सभा में क्या-क्या कहा, निम्न पद्यांश के आधार पर लिखिए

बाल ब्रह्मचारी अति कोही बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही॥

भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही ।।

सहसबाहुभुज छेदनिहारा। परसु बिलोकु महीपकुमारा॥

मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीसकिसोर।

गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर ॥

उत्तर-

परशुराम ने अपने बारे में कहा कि मैं बचपन से ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करता आया हूँ। मेरा स्वभाव अत्यंत क्रोधी है। मैं क्षत्रियों का विनाश करने वाला हूँ, यह सारा संसार जानता है। मैंने अपनी भुजाओं के बल पर पृथ्वी को अनेक बार जीतकर ब्राह्मणों को दे दिया। सहस्त्रबाहु की भुजाओं को काटने वाले इस फरसे के भय से गर्भवती स्त्रियों के गर्भ तक गिर जाते हैं। इसी फरसे से मैं तुम्हारा वध कर सकता हूँ।




प्रश्न 6.

साहस और शक्ति के साथ विनम्रता हो तो बेहतर है। इस कथन पर अपने विचार लिखिए।

उत्तर-

यह पूर्णतया सत्य है कि साहस और शक्ति के साथ विनम्रता का मेल हो तो सोने पर सोहागा होने जैसी स्थिति हो जाती है। अन्यथा विनम्रता के अभाव में व्यक्ति उद्दंड हो जाता है। वह अपनी शक्ति का दुरुपयोग करते हुए दूसरों का अहित करने लगता है। साहस और शक्ति के साथ विनम्रता का मेल श्रीराम में है जो स्वयं को ‘दास’ शब्द से संबोधित करके प्रभावित करते हैं। वे अपनी विनम्रता के कारण परशुराम की क्रोधाग्नि को शीतल जल रूपी वचन के छीटें मारकर शांत कर देते हैं।




प्रश्न 8.

पाठ के आधार पर तुलसी के भाषा सौंदर्य पर दस पंक्तियाँ लिखिए।

उत्तर-

तुलसी की भाषा सरल, सरस, सहज और अत्यंत लोकप्रिय भाषा है। वे रस सिद्ध और अलंकारप्रिय कवि हैं। उन्हें अवधी और ब्रजे दोनों भाषाओं पर समान अधिकार है। रामचरितमानस की अवधी भाषा तो इतनी लोकप्रिय है कि वह जन-जन की कंठहार बनी हुई है। इसमें चौपाई छंदों के प्रयोग से गेयता और संगीतात्मकता बढ़ गई है। इसके अलावा उन्होंने दोहा, सोरठा, छंदों का भी प्रयोग किया है। उन्होंने भाषा को कंठहार बनाने के लिए कोमल शब्दों के प्रयोग पर बल दिया है तथा वर्गों में बदलाव किया है; जैसे

• का छति लाभु जून धनु तोरें ।

• गुरुहि उरिन होतेउँ श्रम थोरे

तुलसी के काव्य में वीर रस एवं हास्य रस की सहज अभिव्यक्ति हुई है; जैसे

बालकु बोलि बधौं नहि तोहीं। केवल मुनिजड़ जानहि मोही।।

इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाही। जे तरजनी देखि मर जाही।।


अलंकार – तुलसी अलंकार प्रिय कवि हैं। उनके काव्य में अनुप्रास, उपमा, रूपक जैसे अलंकारों की छटा देखते ही बनती है; जैसे

अनुप्रास – बालकु बोलि बधौं नहिं तोही।

उपमा – कोटि कुलिस सम वचन तुम्हारा।

रूपक – भानुवंश राकेश कलंकू। निपट निरंकुश अबुध अशंकू।।

उत्प्रेक्षा – तुम्ह तौ कालु हाँक जनु लावा।।

वक्रोक्ति – अहो मुनीसु महाभट मानी।

यमक – अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहु न बूझ, अबूझ

पुनरुक्ति प्रकाश – पुनि-पुनि मोह देखाव कुठारू।

इस तरह तुलसी की भाषा भावों की तरह भाषा की दृष्टि से भी उत्तम है।




प्रश्न 10.

निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकार पहचानकर लिखिए

(क) बालकु बोलि बधौं नहि तोही।

(ख) कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा।

(ग) तुम्ह तौ कालु हाँक जनु लावा। ।

बार बार मोहि लागि बोलावा ॥

(घ) लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोपु कृसानु।

बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु॥

उत्तर-

(क) ‘ब’ वर्ण की आवृत्ति के कारण अनुप्रास अलंकार।

(ख) कोटि-कुलिस – उपमा अलंकार।

कोटि कुलिस सम बचन तुम्हारा। – उपमा अलंकार।

(ग) तुम्ह तौ काल हाँक जनु लावा – उत्प्रेक्षा अलंकार।

बार-बार मोहि लाग बोलावा – पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार।

(घ) लखन उतर आहुति सरिस, जल सम वचन – उपमा अलंकार।

भृगुवर कोप कृसानु – रूपक अलंकार।


रचना और अभिव्यक्ति


प्रश्न 11.

“सामाजिक जीवन में क्रोध की जरूरत बराबर पड़ती है। यदि क्रोध न हो तो मनुष्य दूसरे के द्वारा पहुँचाए जाने वाले बहुत से कष्टों की चिर-निवृत्ति का उपाय ही न कर सके।”

आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी का यह कथन इस बात की पुष्टि करता है कि क्रोध हमेशा नकारात्मक भाव लिए नहीं होता बल्कि कभी- कभी सकारात्मक भी होता है। इसके पक्ष य विपक्ष में अपना मत प्रकट कीजिए।

उत्तर-

क्रोध के सकारात्मक और नकारात्मक रूपों पर छात्र स्वयं चर्चा करें।


प्रश्न 12.

संकलित अंश में राम का व्यवहार विनयपूर्ण और संयन्न है, लक्ष्मण लगातार व्यंग्य बाणों का उपयोग करते हैं और परशुराम का व्यवहार क्रोध से भरा हुआ है। आप अपने आपको इस परिस्थिति में रखकर लिखें कि आपका व्यवहार कैसा होता?

उत्तर-

राम, लक्ष्मण और परशुराम जैसी परिस्थितियाँ होने पर मैं राम और लक्ष्मण के मध्य का व्यवहार करूंगा। मैं श्रीराम जैसा नम्र-विनम्र हो नहीं सकता और लक्ष्मण जितनी उग्रता भी न करूंगा। मैं परशुराम को वस्तुस्थिति से अवगत कराकर उनकी बातों का साहस से भरपूर जवाब देंगा परंतु उनका उपहास न करूंगा।


प्रश्न 13.

अपने किसी परिचित या मित्र के स्वभाव की विशेषताएँ लिखिए।

उत्तर-

छात्र अपने परिचित या मित्र की विशेषताएँ स्वयं लिखें।


प्रश्न 14.

दूसरों की क्षमताओं को कम नहीं समझना चाहिए-इस शीर्षक को ध्यान में रखते हुए एक कहानी लिखिए।

उत्तर-

वन में बरगद का घना-सा पेड़ था। उसकी छाया में मधुमक्खियों ने छत्ता बना रखा था। उस पेड़ पर एक कबूतर भी रहता था। वह अक्सर मधुमक्खियों को नीचा, हीन और तुच्छ प्राणी समझकर सदा उनकी उपेक्षा किया करता था। उसकी बातों से एक मधुमक्खी तो रोनी-सी सूरत बना लेती थी और कबूतर से जान बचाती फिरती। वह मधुमक्खियों को बेकार का प्राणी मानता था। एक दिन एक शिकारी दोपहर में उसी पेड़ के नीचे आराम करने के लिए रुका। पेड़ पर बैठे कबूतर को देखकर उसके मुँह में पानी आ गया। वह धनुषबाण उठाकर कबूतर पर निशाना लगाकर बाण चलाने वाला ही था कि एक मधुमक्खी ने उसकी बाजू पर डंक मार दिया। शिकारी का तीर कबूतर के पास से दूर निकल गया। उसने बाजू पकड़कर बैठे शिकारी को देखकर बाकी का अनुमान लगा लिया। उस मधुमक्खी के छत्ते में लौटते ही उसने सबसे पहले सारी मधुमक्खियों से क्षमा माँगी और भविष्य में किसी की क्षमता को कम न समझने की कसम खाई। अब कबूतर उन मधुमक्खियों का मित्र बन चुका था।


प्रश्न 15.

उन घटनाओं को याद करके लिखिए जब आपने अन्याय का प्रतिकार किया हो।

उत्तर-

एक बार मेरे अध्यापक ने गणित में एक ही सवाल के लिए मुझे तीन अंक तथा किसी अन्य छात्र को पाँच अंक दे दिया। ऐसा उन्होंने तीन प्रश्नों में कर दिया था जिससे मैं कक्षा में तीसरे स्थान पर खिसक रहा था। यह बात मैंने अपने पिता जी को बताई। उन्होंने प्रधानाचार्य से मिलकर कापियों का पुनर्मूल्यांकन कराया और मैं कक्षा में संयुक्त रूप से प्रथम आ गया।


प्रश्न 16.

अवधी भाषा आज किन-किन क्षेत्रों में बोली जाती है?

उत्तर-

अवधी भाषा कानपुर से पूरब चलते ही उन्नाव के कुछ भागों लखनऊ, फैज़ाबाद, बाराबंकी, प्रतापगढ़, सुलतानपुर, जौनपुर, मिर्जापुर, वाराणसी, इलाहाबाद तथा आसपास के क्षेत्रों में बोली जाती है।


अन्य पाठेतर हल प्रश्न


प्रश्न 1.

धनुष टूटने से क्रोधित परशुराम ने राम से क्या कहा?

उत्तर-

धनुष टूटने से क्रोधित परशुराम ने राम से कहा कि सेवक वह है जो सेवा का कार्य करे। शत्रुता का कार्य करके वैर ही मोल लिया जाता है। उन्होंने राम से यह भी कहा कि राम! जिसने भी शिव धनुष तोड़ा है वह सहस्रबाहु के समान मेरा दुश्मन है।


प्रश्न 2.

“न त मारे जैहहिं सब राजा’-परशुराम के मुँह से ऐसा सुनकर लक्ष्मण की क्या प्रतिक्रिया रही?

उत्तर-

सारे राजाओं के मारे जाने की बात सुनकर लक्ष्मण मुसकराने लगे। उन्होंने परशुराम से व्यंग्य के स्वर में कहा कि बचपन में मैंने बहुत-सी धनुहियाँ तोड़ी थी, तब तो आपने ऐसा क्रोध कभी नहीं किया। इस धनुष से आपका इतना मोह क्यों है?


प्रश्न 3.

परशुराम के अनुसार, लक्ष्मण क्या भूल कर रहे थे? उनकी भूल का परशुराम ने क्या कारण बताया?

उत्तर-

परशुराम के अनुसार लक्ष्मण संसार की सभी धनुषों को एक समान समझने की भूल कर रहे थे जबकि शिवजी का यह धनुष सारे संसार में प्रसिद्ध है। अन्य धनुषों की कोई विशेष महत्ता नहीं है। लक्ष्मण की इस भूल का कारण परशुराम यह मानते हैं कि लक्ष्मण काल के वश में होने से ऐसा कह रहे हैं।

अथवा

धनुष टूटने पर श्रीराम द्वारा परशुराम को जो उत्तर दिया गया उसके आधार पर राम की चारित्रिक विशेषताएँ लिखिए।

उत्तर-

धनुष टूटने पर श्रीराम ने परशुराम का क्रोध शांत करते हुए जो उत्तर दिया, उससे राम की विनम्रता, शिष्टता और उच्च सहनशीलता का पता चलता है। उनका परशुराम से यह कहना कि धनुष तोड़ने वाला आपका कोई दास ही होगा। इस कथन में उनकी विनम्रता की पराकाष्ठा झलकती है।


प्रश्न 4.

धनुष टूटने पर लक्ष्मण किन तर्कों के आधार पर राम को निर्दोष सिद्ध करने का प्रयास कर रहे थे?

उत्तर-

धनुष टूट जाने पर लक्ष्मण इसका जिम्मेदार राम को नहीं मान रहे थे। उनका मानना था कि धनुष बहुत पुराना और कमज़ोर था जो राम के छूते ही टूट गया था। राम ने तो इसे नया समझकर उठाया था। ऐसा पुराना धनुष टूटने से हमारा क्या लाभ। इन तर्को द्वारा वे परशुराम के समक्ष राम को निर्दोष सिद्ध कर रहे थे।


प्रश्न 5.

परशुराम ने अपनी कौन-कौन-सी विशेषताओं द्वारा लक्ष्मण को डराने का प्रयास किया?

उत्तर-

परशुराम ने लक्ष्मण के मन में भय उत्पन्न करने के लिए अपनी निम्नलिखित विशेषताएँ बताईं


लक्ष्मण को सठ कहकर चेताया कि तूने अभी मेरे स्वभाव के बारे में नहीं सुना।


मैं तुझे बालक समझकर नहीं मार रहा हूँ।


तू मुझे मूर्ख मुनि समझने की भूल कर रहा है।


मैं बाल ब्रह्मचारी और क्षत्रियों का नाश करनेवाला हूँ।


मैंने अनेक बार इस पृथ्वी को जीतकर ब्राह्मणों को दे दिया।


प्रश्न 6.

परशुराम को अपने फरसे पर इतना घमंड क्यों था?

अथवा

परशुराम ने अपने फरसे की क्या-क्या विशेषताएँ बताईं ?

उत्तर-

परशुराम को अपने फरसे पर इतना घमंड इसलिए था क्योंकि


इसी फरसे के बल पर उन्होंने सहस्रबाहु को हराया था।


उनका फरसा अत्यंत भयानक और कठोर है।


यह फरसा गर्भ में पल रहे बच्चों का भी वध कर डालता है।


यह फरसा परशुराम का प्रिय हथियार था।


प्रश्न 7.

लक्ष्मण ने क्या-क्या कहकर परशुराम पर व्यंग्य किया?

उत्तर-

लक्ष्मण ने परशुराम से कहा कि अरे! मुनिश्रेष्ठ आप तो महान योद्धा हैं जो बार-बार अपने कुल्हाड़े को दिखाकर फेंक मारकर पहाड़ उड़ा देना चाहते हो। आपके सामने जो भी हैं उनमें से कोई भी कुम्हड़े की बतिया के जैसे कमज़ोर नहीं हैं। जो आपके इशारे मात्र से भयभीत हो जाएँगे।


प्रश्न 8.

लक्ष्मण अपने कुल की किस परंपरा का हवाला देकर युद्ध करने से बच रहे थे?

उत्तर-

लक्ष्मण ने परशुराम से कहा कि मैं आपसे भयभीत नहीं हूं। हमारे कुल की यह परंपरा है कि देवता, ब्राह्मण, ईश्वरभक्त और गाय के साथ वीरता का प्रदर्शन नहीं किया जाता है। इनकी हत्या करने पर पाप का भागीदार बनना पड़ता है और हारने पर अपयश मिलता है। यदि आप मुझे मार भी देते हैं तो भी आपके पैरों में पड़ना होगा।


प्रश्न 9.

लक्ष्मण के वाक्चातुर्य पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।

उत्तर-

धनुष टूटने से क्रोधित परशुराम जब राम और लक्ष्मण को डराने-धमकाने का प्रयास करते हैं तो लक्ष्मण अपने वाक्चातुर्य का परिचय देते हैं और उनके बड़बोलेपन को हँस-मुसकराकर व्यंग्योक्तियों से हवा में उड़ा देते हैं। वे ऐसे सूक्ति बाण चलाते हैं कि परशुराम का क्रोध भड़क उठता है। वे फिर कोमल शब्दों के सहारे उन्हें गंभीरता से बात करने के लिए विवश हो जाते हैं।


प्रश्न 10.

परशुराम विश्वामित्र से लक्ष्मण की शिकायत किस तरह करते हैं?

उत्तर-

परशुराम लक्ष्मण की शिकायत करते हुए विश्वामित्र से कहते हैं कि


यह बालक बड़ा ही कुबुधि है।


यह कुटिल एवं काल के वशीभूत होकर अपने ही कुल का नाश करने वाला है।


यह सूर्यवंश रूपी चंद्रमा पर कलंक है।


यह पूरी तरह उदंड, निडर और मूर्ख है।


प्रश्न 11.

लक्ष्मण ने परशुराम और उनके सुयश पर किस तरह व्यंग्य किया?

उत्तर-

लक्ष्मण ने परशुराम और उनके सुयश पर व्यंग्य करते हुए कहा कि आपके सुयश का वर्णन आपके अलावा दूसरा कोई नहीं कर सकता है। आपने अपने मुँह से अपनी बड़ाई बार-बार कर चुके हैं। इतने पर भी संतोष न हुआ हो तो फिर से कुछ कह डालिए। इसके बाद भी आप वीरव्रती और क्रोध रहित हैं। अतः आप गाली देते हुए अच्छे नहीं लगते हैं।


प्रश्न 12.

लक्ष्मण और श्रीराम के वचनों में मुख्य अंतर क्या था?

उत्तर-

लक्ष्मण और श्रीराम के वचनों में मुख्य अंतर यह था कि लक्ष्मण के वचनों में उद्दंडता, व्यंग्यात्मकता तथा उग्रता का मेल था जो परशुराम के क्रोध को यज्ञ की आहुति हवन सामग्री के समान भड़का देते थे। इसके विपरीत श्रीराम के वचनों में विनम्रता और विनयशीलता का भाव था जो शीतल जल के समान प्रभावकारी थे जिससे परशुराम की क्रोधाग्नि शांत हो गई।


प्रश्न 13.

‘राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद’ पाठ में निहित संदेश स्पष्ट कीजिए।

उत्तर-

‘राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद’ नामक पाठ में निहित संदेश यह है कि हमें क्रोध करने से बचना चाहिए। यह हमारे बुधि विवेक का नाश कर देता है। क्रोधी व्यक्ति ऐसे कार्य करता है जिससे वह उपहास का पात्र बन जाता है। हमें सदैव विनम्र, शांत एवं कोमल व्यवहार करना चाहिए। ऐसे व्यवहार से हमारे बिगड़े काम भी बन जाते हैं तथा हमें सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है।

Monday, July 27, 2020

पहलवान की ढोलक

https://drive.google.com/file/d/1xniDEu9D4bWi6ZxljTdUshH0cuG3EHDi/view?usp=drivesdk

है अंधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है

कल्पना के हाथ से कमनीय जो मंदिर बना था
भावना के हाथ ने जिसमें वितानों को तना था।
स्वप्न ने अपने करों से था जिसे रुचि से सँवारा
स्वर्ग के दुष्प्राप्य रंगों से, रसों से जो सना था
ढह गया वह तो जुटाकर ईंट, पत्थर, कंकड़ों को
एक अपनी शांति की कुटिया बनाना कब मना है
है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है।

बादलों के अश्रु से धोया गया नभ-नील नीलम
का बनाया था गया मधुपात्र मनमोहक, मनोरम
प्रथम ऊषा की किरण की लालिमा-सी लाल मदिरा
थी उसी में चमचमाती नव घनों में चंचला सम
वह अगर टूटा मिलाकर हाथ की दोनों हथेली
एक निर्मल स्रोत से तृष्णा बुझाना कब मना है
है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है।

क्या घड़ी थी, एक भी चिंता नहीं थी पास आई
कालिमा तो दूर, छाया भी पलक पर थी न छाई
आँख से मस्ती झपकती, बात से मस्ती टपकती
थी हँसी ऐसी जिसे सुन बादलों ने शर्म खाई
वह गई तो ले गई उल्लास के आधार, माना
पर अथिरता पर समय की मुसकराना कब मना है
है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है।

हाय, वे उन्माद के झोंके कि जिनमें राग जागा
वैभवों से फेर आँखें गान का वरदान माँगा
एक अंतर से ध्वनित हों दूसरे में जो निरंतर
भर दिया अंबर-अवनि को मत्तता के गीत गा-गा
अंत उनका हो गया तो मन बहलने के लिए ही
ले अधूरी पंक्ति कोई गुनगुनाना कब मना है
है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है।

हाय, वे साथी कि चुंबक लौह-से जो पास आए
पास क्या आए, हृदय के बीच ही गोया समाए
दिन कटे ऐसे कि कोई तार वीणा के मिलाकर
एक मीठा और प्यारा ज़िन्दगी का गीत गाए
वे गए तो सोचकर यह लौटने वाले नहीं वे
खोज मन का मीत कोई लौ लगाना कब मना है
है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है।

क्या हवाएँ थीं कि उजड़ा प्यार का वह आशियाना
कुछ न आया काम तेरा शोर करना, गुल मचाना
नाश की उन शक्तियों के साथ चलता ज़ोर किसका
किंतु ऐ निर्माण के प्रतिनिधि, तुझे होगा बताना
जो बसे हैं वे उजड़ते हैं प्रकृति के जड़ नियम से
पर किसी उजड़े हुए को फिर बसाना कब मना है
है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है।

Hai Andheri Raat Par Diya Jalana Kab Mana Hai
kalpanaa ke haath se kamaniiy jo mandir banaa thaa
bhaavanaa ke haath ne jisamen vitaanon ko tanaa thaa.

svapn ne apane karon se thaa jise ruchi se sanvaaraa
svarg ke duSpraapy rangon se, rason se jo sanaa thaa
Dhah gayaa vah to juTaakar iinT, patthar, kankaDon ko
ek apanii shaanti kii kuTiyaa banaanaa kab manaa hai
hai andherii raat par diivaa jalaanaa kab manaa hai.

baadalon ke ashru se dhoyaa gayaa nabh-niil niilam
kaa banaayaa thaa gayaa madhupaatr manamohak, manoram
pratham ooSaa kii kiraN kii laalimaa-sii laal madiraa
thii usii men chamachamaatii nav ghanon men chanchalaa sam
vah agar TooTaa milaakar haath kii donon hathelii
ek nirmal srot se tRiSNaa bujhaanaa kab manaa hai
hai andherii raat par diivaa jalaanaa kab manaa hai.

kyaa ghaDii thii, ek bhii chintaa nahiin thii paas aaii
kaalimaa to door, chhaayaa bhii palak par thii n chhaaii
aankh se mastii jhapakatii, baat se mastii Tapakatii
thii hansii aisii jise sun baadalon ne sharm khaaii
vah gaii to le gaii ullaas ke aadhaar, maanaa
par athirataa par samay kii musakaraanaa kab manaa hai
hai andherii raat par diivaa jalaanaa kab manaa hai.

haay, ve unmaad ke jhonke ki jinamen raag jaagaa
vaibhavon se fer aankhen gaan kaa varadaan maangaa
ek antar se dhvanit hon doosare men jo nirantar
bhar diyaa anbar-avani ko mattataa ke giit gaa-gaa
ant unakaa ho gayaa to man bahalane ke lie hii
le adhoorii pankti koii gunagunaanaa kab manaa hai
hai andherii raat par diivaa jalaanaa kab manaa hai.

haay, ve saathii ki chunbak lauh-se jo paas aae
paas kyaa aae, hRiday ke biich hii goyaa samaae
din kaTe aise ki koii taar viiNaa ke milaakar
ek miiThaa aur pyaaraa jindagii kaa giit gaae
ve gae to sochakar yah lauTane vaale nahiin ve
khoj man kaa miit koii lau lagaanaa kab manaa hai
hai andherii raat par diivaa jalaanaa kab manaa hai.

kyaa havaaen thiin ki ujaDaa pyaar kaa vah aashiyaanaa
kuchh n aayaa kaam teraa shor karanaa, gul machaanaa
naash kii un shaktiyon ke saath chalataa jor kisakaa
kintu ai nirmaaN ke pratinidhi, tujhe hogaa bataanaa
jo base hain ve ujaDte hain prakRiti ke jaD niyam se
par kisii ujaDe hue ko fir basaanaa kab manaa hai
hai andherii raat par diivaa jalaanaa kab Mana hai.

H Bachchan