Thursday, May 7, 2020
Wednesday, May 6, 2020
संज्ञा, सर्वनाम और उनके प्रकार कक्षा 6
संज्ञा की परिभाषा- जिस शब्द से किसी व्यक्ति, स्थान, वस्तु अथवा भाव इत्यादि का बोध होता है, उसे संज्ञा कहते हैं
संज्ञा के तीन भेद हैं:-
1.व्यक्तिवाचक संज्ञा
2.जातिवाचक संज्ञा
3.भाववाचक संज्ञा
1. व्यक्तिवाचक संज्ञा :- जिन संज्ञा शब्दों से किसी विशेष स्थान, वस्तु अथवा व्यक्ति का बोध होता है, उसे व्यक्तिवाचक संज्ञा कहते हैं। जैसे राम, मोहन, महात्मा गांधी, नेपाल, भारत, हिमालय, पृथ्वी, जनवरी, ताजमहल आदि।
2.जातिवाचक संज्ञा :- जिन संज्ञा शब्दों से किसी प्राणी वस्तु अथवा पदार्थ की पूरी जाति का बोध होता हो, उसे जातिवाचक संज्ञा कहते हैं। जैसे - विद्यार्थी, देश, पर्वत, नदी महीना, पशु, स्त्री, अध्यापक, कर्मचारी, देवता, मित्र, ईश्वर आदि।
भाववाचक संज्ञा :- जिन संज्ञा शब्दों से भाव, दशा, स्थिति, गुण अथवा विशेषता आदि का बोध होता हो, उसे भाववाचक संज्ञा कहते हैं। जैसे खुशी, उदासी, ईमानदारी, सच्चाई, सुख, दुःख, जीत, आनंद, मिठास आदि।
संज्ञा के दो अन्य भेद भी हैं-
1. द्रव्यवाचक संज्ञा :- जिन संज्ञा शब्दों से किसी द्रव्य पदार्थ अथवा धातु का बोध होता है, उसे द्रव्यवाचक संज्ञा कहते हैं। जैसे - मिट्टी, सोना, चांदी, दूध, पानी गेहूं, घी, आदि।
समुदाय वाचक या समूहवाचक संज्ञा :- जिन संज्ञा शब्दों से व्यक्ति वस्तुओं प्राणियों या पदार्थों के समूह या समुदाय का बोध होता है, उसे समूहवाचक अथवा समुदाय वाचक संज्ञा कहते हैं। जैसे- जनता, जुलूस, भीड़, झुंड, ढेर, कक्षा आदि।
भाववाचक संज्ञाएँ चार प्रकार के शब्दों से बनती हैं-
1. जातिवाचक संज्ञा से
2.विशेषण से
3. सर्वनाम से
4.क्रिया से
जातिवाचक संज्ञा से भाववाचक संज्ञा बनाने के उदाहरण -
बालक - बालकपन
लड़का - लड़कपन
मानव - मानवता
स्त्री - स्त्रीत्व
पुरुष -पुरुषत्व आदि।
विशेषण से भाववाचक संज्ञा बनाने के उदाहरण -
वीर - वीरता
सुंदर- सुंदरता
लाल - लाली
आलसी - आलस्य
मीठा - मिठास
कड़वा - कड़वाहट
सर्वनाम से भाववाचक संज्ञा बनाने के उदाहरण :-
अपना - अपनापन
पराया -परायापन
आप - आपा
निज - निजत्व
स्व - स्वत्व
क्रिया से भाववाचक संज्ञा बनाने के उदाहरण-
पालना - पालन
धोना - धुलाई
सजना - सजावट
मारना - मार
उड़ना - उड़ान
बनाना - बनावट
लिखना - लिखावट
सर्वनाम
- संज्ञा के स्थान पर प्रयुक्त होने वाले शब्द सर्वनाम कहलाते हैं। यथा---- मैं, हम, तुम, तू, वह, यह आदि सर्वनाम है।
सर्वनाम के एकवचन तथा बहुवचन रुप होते हैं-
एकवचन = मैं, तुम, वह, यह आदि।
बहुवचन = हम, आप, वे, ये, इन्हें, उन्हें आदि।
सर्वनाम के भेद - सर्वनाम के 6 भेद होते हैं-
1. पुरुषवाचक सर्वनाम
2. निश्चयवाचक सर्वनाम
3. अनिश्चयवाचक सर्वनाम
4. सम्बन्धवाचक सर्वनाम
5. प्रश्नवाचक सर्वनाम
6. निजवाचक सर्वनाम
1. पुरुषवाचक सर्वनाम- जिस सर्वनाम से कहने वाले, सुनने वाले तथा जिसके बारे में बात की जा रही है, उसका ज्ञान होता हो, उसे पुरुषवाचक सर्वनाम कहते हैं। जैसे - मैं, तुम, वह, वे आदि।
पुरुषवाचक सर्वनाम तीन प्रकार के होते हैं-
I उत्तम पुरुष सर्वनाम- बोलने वाला अपने लिए जिस सर्वनाम का प्रयोग करता है, उसे उत्तम पुरुष सर्वनाम कहते हैं जैसे मैं, हम, मेरा, हमारा आदि।
ii मध्यम पुरुष सर्वनाम - बोलने वाले के द्वारा सुनने वाले के लिए जिस सर्वनाम का प्रयोग किया जाता है कोमा उसे मध्यम पुरुष सर्वनाम कहते हैं। जैसे तू , तुम, आप आदि।
iii प्रथम पुरुष सर्वनाम - इसे अन्य पुरुष सर्वनाम भी कहते हैं। बोलने वाला सुनने वाले के अलावा किसी अन्य के लिए जिस सर्वनाम का प्रयोग करता है कोमा उसे प्रथम पुरुष सर्वनाम या अन्य पुरुष सर्वनाम कहते हैं। जैसे - वह, वे, यह, ये आदि।
2. निश्चयवाचक सर्वनाम - जो सर्वनाम किसी निश्चित वस्तु कोमा व्यक्ति अथवा स्थान की ओर संकेत करने के लिए प्रयोग में लाए जाते हैं, उन्हें निश्चयवाचक सर्वनाम कहते हैं। जैसे -मेरी, तुम्हारी, इसने, उसने आदि।
3. अनिश्चयवाचक सर्वनाम - जिस नाम से किसी निश्चित संज्ञा का बोध नहीं होता हो, उसे निश्चयवाचक सर्वनाम कहते हैं। जैसे - कोई, किसी, कुछ आदि।
4. सम्बन्धवाचक सर्वनाम - जो सर्वनाम शब्द वाक्य में प्रयोग किए गए दूसरे सर्वनाम या संज्ञा शब्द से संबंध बताने के लिए प्रयोग किए जाते हैं, वे संबंधवाचक सर्वनाम कहलाते हैं। जैसे जो, जैसा, वैसा, उसका,जिसका आदि।
जो करेगा, वो भरेगा।
जैसी करनी, वैसी भरनी।
5. प्रश्नवाचक सर्वनाम - जो सर्वनाम प्रश्न पूछने के लिए प्रयोग में लाए जाते हैं, उन्हें प्रश्नवाचक सर्वनाम कहते हैं। जैसे कौन, कहां, क्या आदि।
6. निजवाचक सर्वनाम - जो सर्वनाम शब्द कर्ता के द्वारा अपने स्वयं के लिए प्रयोग में लिए जाते हैं, उन्हें निजवाचक सर्वनाम कहते हैं। जैसे अपना, अपनी, अपने-आप, आप, खुद, स्वयं आदि।
संज्ञा के तीन भेद हैं:-
1.व्यक्तिवाचक संज्ञा
2.जातिवाचक संज्ञा
3.भाववाचक संज्ञा
1. व्यक्तिवाचक संज्ञा :- जिन संज्ञा शब्दों से किसी विशेष स्थान, वस्तु अथवा व्यक्ति का बोध होता है, उसे व्यक्तिवाचक संज्ञा कहते हैं। जैसे राम, मोहन, महात्मा गांधी, नेपाल, भारत, हिमालय, पृथ्वी, जनवरी, ताजमहल आदि।
2.जातिवाचक संज्ञा :- जिन संज्ञा शब्दों से किसी प्राणी वस्तु अथवा पदार्थ की पूरी जाति का बोध होता हो, उसे जातिवाचक संज्ञा कहते हैं। जैसे - विद्यार्थी, देश, पर्वत, नदी महीना, पशु, स्त्री, अध्यापक, कर्मचारी, देवता, मित्र, ईश्वर आदि।
भाववाचक संज्ञा :- जिन संज्ञा शब्दों से भाव, दशा, स्थिति, गुण अथवा विशेषता आदि का बोध होता हो, उसे भाववाचक संज्ञा कहते हैं। जैसे खुशी, उदासी, ईमानदारी, सच्चाई, सुख, दुःख, जीत, आनंद, मिठास आदि।
संज्ञा के दो अन्य भेद भी हैं-
1. द्रव्यवाचक संज्ञा :- जिन संज्ञा शब्दों से किसी द्रव्य पदार्थ अथवा धातु का बोध होता है, उसे द्रव्यवाचक संज्ञा कहते हैं। जैसे - मिट्टी, सोना, चांदी, दूध, पानी गेहूं, घी, आदि।
समुदाय वाचक या समूहवाचक संज्ञा :- जिन संज्ञा शब्दों से व्यक्ति वस्तुओं प्राणियों या पदार्थों के समूह या समुदाय का बोध होता है, उसे समूहवाचक अथवा समुदाय वाचक संज्ञा कहते हैं। जैसे- जनता, जुलूस, भीड़, झुंड, ढेर, कक्षा आदि।
भाववाचक संज्ञाएँ चार प्रकार के शब्दों से बनती हैं-
1. जातिवाचक संज्ञा से
2.विशेषण से
3. सर्वनाम से
4.क्रिया से
जातिवाचक संज्ञा से भाववाचक संज्ञा बनाने के उदाहरण -
बालक - बालकपन
लड़का - लड़कपन
मानव - मानवता
स्त्री - स्त्रीत्व
पुरुष -पुरुषत्व आदि।
विशेषण से भाववाचक संज्ञा बनाने के उदाहरण -
वीर - वीरता
सुंदर- सुंदरता
लाल - लाली
आलसी - आलस्य
मीठा - मिठास
कड़वा - कड़वाहट
सर्वनाम से भाववाचक संज्ञा बनाने के उदाहरण :-
अपना - अपनापन
पराया -परायापन
आप - आपा
निज - निजत्व
स्व - स्वत्व
क्रिया से भाववाचक संज्ञा बनाने के उदाहरण-
पालना - पालन
धोना - धुलाई
सजना - सजावट
मारना - मार
उड़ना - उड़ान
बनाना - बनावट
लिखना - लिखावट
सर्वनाम
- संज्ञा के स्थान पर प्रयुक्त होने वाले शब्द सर्वनाम कहलाते हैं। यथा---- मैं, हम, तुम, तू, वह, यह आदि सर्वनाम है।
सर्वनाम के एकवचन तथा बहुवचन रुप होते हैं-
एकवचन = मैं, तुम, वह, यह आदि।
बहुवचन = हम, आप, वे, ये, इन्हें, उन्हें आदि।
सर्वनाम के भेद - सर्वनाम के 6 भेद होते हैं-
1. पुरुषवाचक सर्वनाम
2. निश्चयवाचक सर्वनाम
3. अनिश्चयवाचक सर्वनाम
4. सम्बन्धवाचक सर्वनाम
5. प्रश्नवाचक सर्वनाम
6. निजवाचक सर्वनाम
1. पुरुषवाचक सर्वनाम- जिस सर्वनाम से कहने वाले, सुनने वाले तथा जिसके बारे में बात की जा रही है, उसका ज्ञान होता हो, उसे पुरुषवाचक सर्वनाम कहते हैं। जैसे - मैं, तुम, वह, वे आदि।
पुरुषवाचक सर्वनाम तीन प्रकार के होते हैं-
I उत्तम पुरुष सर्वनाम- बोलने वाला अपने लिए जिस सर्वनाम का प्रयोग करता है, उसे उत्तम पुरुष सर्वनाम कहते हैं जैसे मैं, हम, मेरा, हमारा आदि।
ii मध्यम पुरुष सर्वनाम - बोलने वाले के द्वारा सुनने वाले के लिए जिस सर्वनाम का प्रयोग किया जाता है कोमा उसे मध्यम पुरुष सर्वनाम कहते हैं। जैसे तू , तुम, आप आदि।
iii प्रथम पुरुष सर्वनाम - इसे अन्य पुरुष सर्वनाम भी कहते हैं। बोलने वाला सुनने वाले के अलावा किसी अन्य के लिए जिस सर्वनाम का प्रयोग करता है कोमा उसे प्रथम पुरुष सर्वनाम या अन्य पुरुष सर्वनाम कहते हैं। जैसे - वह, वे, यह, ये आदि।
2. निश्चयवाचक सर्वनाम - जो सर्वनाम किसी निश्चित वस्तु कोमा व्यक्ति अथवा स्थान की ओर संकेत करने के लिए प्रयोग में लाए जाते हैं, उन्हें निश्चयवाचक सर्वनाम कहते हैं। जैसे -मेरी, तुम्हारी, इसने, उसने आदि।
3. अनिश्चयवाचक सर्वनाम - जिस नाम से किसी निश्चित संज्ञा का बोध नहीं होता हो, उसे निश्चयवाचक सर्वनाम कहते हैं। जैसे - कोई, किसी, कुछ आदि।
4. सम्बन्धवाचक सर्वनाम - जो सर्वनाम शब्द वाक्य में प्रयोग किए गए दूसरे सर्वनाम या संज्ञा शब्द से संबंध बताने के लिए प्रयोग किए जाते हैं, वे संबंधवाचक सर्वनाम कहलाते हैं। जैसे जो, जैसा, वैसा, उसका,जिसका आदि।
जो करेगा, वो भरेगा।
जैसी करनी, वैसी भरनी।
5. प्रश्नवाचक सर्वनाम - जो सर्वनाम प्रश्न पूछने के लिए प्रयोग में लाए जाते हैं, उन्हें प्रश्नवाचक सर्वनाम कहते हैं। जैसे कौन, कहां, क्या आदि।
6. निजवाचक सर्वनाम - जो सर्वनाम शब्द कर्ता के द्वारा अपने स्वयं के लिए प्रयोग में लिए जाते हैं, उन्हें निजवाचक सर्वनाम कहते हैं। जैसे अपना, अपनी, अपने-आप, आप, खुद, स्वयं आदि।
Tuesday, May 5, 2020
पत्रकारिता पर वर्कशीट
पत्रकारिता के विविध आयाम
प्र.1
- ‘पत्रकारिता’ क्या है?
उ.- सूचनाओं को संकलित और संपादित करके आम पाठकों तक पहुँचाने का कार्य ही
पत्रकारिता है।
प्र.2- किसी घटना के ‘समाचार’ बनने के लिए उसमें कौन-कौन से तत्त्व आवश्यक हैं ?
उ.- नवीनता, जनरुचि, निकटता, प्रभाव, टकराव या संघर्ष, महत्त्वपूर्ण लोग उपयोगी जानकारी,अनोखापन, पाठकवर्ग व नीतिगत ढाँचा आदि बातें निश्चित करती हैं कि कोई घटना समाचार है या नहीं।
प्र.3- समाचारों के संपादन में किन प्रमुख सिद्धान्तों का पालन जरूरी है ?
उ.- तथ्यपरकता, वस्तुपरकता, निष्पक्षता, संतुलन व स्रोत की जानकारी जैसे सिद्धान्तों का पालन संपादन में जरूरी है।
प्र.4- पत्रकारिता के प्रमुख प्रकारों के नाम बताइए।
उ.- खोजपरक, वॉचडॉग, एडवोकेसी आदि।
प्र.5- ‘डैडलाइन’ क्या है ?
उ.- किसी समाचार माध्यम में समाचार को प्रकाशित/प्रसारित होने के लिए प्राप्त होने की
आखिरी समय-सीमा डैडलाइन कहलाती है।आमतौर पर डैडलाइन के बाद प्राप्त समाचार के प्रकाशित/प्रसारित होने की संभावना कम ही होती है।
प्र.6- पत्रकारिता के विविध आयाम कौन-कौन से हैं ?
उ.- समाचारों के अतिरिक्त समाचार पत्रों में अन्य विविध सामग्री भी प्रकाशित होती है। वे ही उसके विविध आयाम हैं। जैसे संपादकीय पृष्ठ (संपादकीय अग्रलेख पाठकों के पत्र आदि),फोटो पत्रकारिता, कार्टून कोना रेखांकन व कार्टोग्राफ आदि।
प्र.7-पेज-थ्री पत्रकारिता से क्या आशय है ?
उ.- फैशन, अमीरों की पार्टियाँ व जाने माने लोगों (सेलीब्रिटीज़) के निजी-जीवन से संबंधित सामग्री का प्रकाशन पेज-थ्री पत्रकारिता है।
प्र.8- पीत-पत्रकारिता क्या है ?
उ.- पाठकों को लुभाने के लिए झूठी, अफ़वाहों व्यक्तिगत आरोप-प्रत्यारोपों, प्रेम-संबंधों,भंडाफोड़ और फिल्मी गपशप जैसी सामग्री के प्रकाशन को पीत-पत्रकारिता कहते हैं।
उ.- सूचनाओं को संकलित और संपादित करके आम पाठकों तक पहुँचाने का कार्य ही
पत्रकारिता है।
प्र.2- किसी घटना के ‘समाचार’ बनने के लिए उसमें कौन-कौन से तत्त्व आवश्यक हैं ?
उ.- नवीनता, जनरुचि, निकटता, प्रभाव, टकराव या संघर्ष, महत्त्वपूर्ण लोग उपयोगी जानकारी,अनोखापन, पाठकवर्ग व नीतिगत ढाँचा आदि बातें निश्चित करती हैं कि कोई घटना समाचार है या नहीं।
प्र.3- समाचारों के संपादन में किन प्रमुख सिद्धान्तों का पालन जरूरी है ?
उ.- तथ्यपरकता, वस्तुपरकता, निष्पक्षता, संतुलन व स्रोत की जानकारी जैसे सिद्धान्तों का पालन संपादन में जरूरी है।
प्र.4- पत्रकारिता के प्रमुख प्रकारों के नाम बताइए।
उ.- खोजपरक, वॉचडॉग, एडवोकेसी आदि।
प्र.5- ‘डैडलाइन’ क्या है ?
उ.- किसी समाचार माध्यम में समाचार को प्रकाशित/प्रसारित होने के लिए प्राप्त होने की
आखिरी समय-सीमा डैडलाइन कहलाती है।आमतौर पर डैडलाइन के बाद प्राप्त समाचार के प्रकाशित/प्रसारित होने की संभावना कम ही होती है।
प्र.6- पत्रकारिता के विविध आयाम कौन-कौन से हैं ?
उ.- समाचारों के अतिरिक्त समाचार पत्रों में अन्य विविध सामग्री भी प्रकाशित होती है। वे ही उसके विविध आयाम हैं। जैसे संपादकीय पृष्ठ (संपादकीय अग्रलेख पाठकों के पत्र आदि),फोटो पत्रकारिता, कार्टून कोना रेखांकन व कार्टोग्राफ आदि।
प्र.7-पेज-थ्री पत्रकारिता से क्या आशय है ?
उ.- फैशन, अमीरों की पार्टियाँ व जाने माने लोगों (सेलीब्रिटीज़) के निजी-जीवन से संबंधित सामग्री का प्रकाशन पेज-थ्री पत्रकारिता है।
प्र.8- पीत-पत्रकारिता क्या है ?
उ.- पाठकों को लुभाने के लिए झूठी, अफ़वाहों व्यक्तिगत आरोप-प्रत्यारोपों, प्रेम-संबंधों,भंडाफोड़ और फिल्मी गपशप जैसी सामग्री के प्रकाशन को पीत-पत्रकारिता कहते हैं।
जनसंचार एवं पत्रकारिता से - एक अंक के 4 प्रश्न पूछे जाएँगे तथा उत्तर संक्षेप
में दिए जाएँगे-
उत्तम अंक प्राप्त करने के लिए ध्यान देने योग्य बातें-
1. अभिव्यक्ति और माध्यम से संबंधित प्रश्न विशेष रूप से तथ्यपरक होते हैं अत: उत्तर लिखते समय सही तथ्यों को ध्यान में रखें।
2. उत्तर बिंदुवार लिखें, मुख्य बिंदु को सबसे पहले लिख दें ।
3. शुद्ध वर्तनी का ध्यान रखें ।
4. लेख साफ़-सुथरा एवम पठनीय हो ।
5. उत्तर में अनावश्यक बातें न लिखें ।
उत्तम अंक प्राप्त करने के लिए ध्यान देने योग्य बातें-
1. अभिव्यक्ति और माध्यम से संबंधित प्रश्न विशेष रूप से तथ्यपरक होते हैं अत: उत्तर लिखते समय सही तथ्यों को ध्यान में रखें।
2. उत्तर बिंदुवार लिखें, मुख्य बिंदु को सबसे पहले लिख दें ।
3. शुद्ध वर्तनी का ध्यान रखें ।
4. लेख साफ़-सुथरा एवम पठनीय हो ।
5. उत्तर में अनावश्यक बातें न लिखें ।
जनसंचार माध्यम
1. संचार किसे कहते हैं?
उत्तर :- ‘संचार’ शब्द चर् धातु के साथ सम्
उपसर्ग जोड़ने से बना है- इसका अर्थ है चलना या एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचना
|संचार संदेशों का आदान-प्रदान है | सूचनाओं, विचारों और
भावनाओं का लिखित, मौखिक या दृश्य-श्रव्य माध्यमों के जरिये सफ़लता पूर्वक आदान-प्रदान करना या एक जगह से दूसरी जगह पहुँचाना संचार है।
2. “संचार अनुभवों की साझेदारी है”- किसने कहा है?
उत्तर
:--प्रसिद्ध संचार शास्त्री विल्बर श्रेम ने |
3. संचार माध्यम से आप क्या समझते हैं?
उत्तर
:-संचार-प्रक्रिया को संपन्न करने में सहयोगी तरीके तथा उपकरण संचार के माध्यम
कहलाते हैं।
4. संचार के मूल तत्त्व लिखिए |
उत्तर :-
· संचारक या स्रोत
· एन्कोडिंग (कूटीकरण )
· संदेश ( जिसे संचारक प्राप्तकर्ता तक पहुँचाना चाहता है)
· माध्यम (संदेश को प्राप्तकर्ता तक पहुँचाने वाला माध्यम होता है जैसे- ध्वनि-तरंगें, वायु-तरंगें, टेलीफोन, समाचारपत्र, रेडियो, टी वी आदि)
· प्राप्तकर्त्ता (डीकोडिंग कर संदेश को प्राप्त करने वाला)
· फीडबैक (संचार प्रक्रिया में प्राप्तकर्त्ता की प्रतिक्रिया)
· शोर (संचार प्रक्रिया में आने वाली बाधा)
· संचारक या स्रोत
· एन्कोडिंग (कूटीकरण )
· संदेश ( जिसे संचारक प्राप्तकर्ता तक पहुँचाना चाहता है)
· माध्यम (संदेश को प्राप्तकर्ता तक पहुँचाने वाला माध्यम होता है जैसे- ध्वनि-तरंगें, वायु-तरंगें, टेलीफोन, समाचारपत्र, रेडियो, टी वी आदि)
· प्राप्तकर्त्ता (डीकोडिंग कर संदेश को प्राप्त करने वाला)
· फीडबैक (संचार प्रक्रिया में प्राप्तकर्त्ता की प्रतिक्रिया)
· शोर (संचार प्रक्रिया में आने वाली बाधा)
5. संचार के प्रमुख प्रकारों का उल्लेख कीजिए?
· सांकेतिक संचार
· मौखिक संचार
· अमौखिक संचार
· अंत:वैयक्तिक संचार
· अंतरवैयक्तिक संचार
· समूह संचार
· जनसंचार
· मौखिक संचार
· अमौखिक संचार
· अंत:वैयक्तिक संचार
· अंतरवैयक्तिक संचार
· समूह संचार
· जनसंचार
6. जनसंचार से आप क्या समझते हैं?
उत्तर
:-प्रत्यक्ष संवाद के बजाय किसी तकनीकी या यांत्रिक माध्यम के द्वारा समाज के एक विशाल वर्ग से संवाद कायम करना जनसंचार कहलाता है।
7. जनसंचार के प्रमुख माध्यमों का उल्लेख कीजिए |
उत्तर :-अखबार, रेडियो, टीवी, इंटरनेट, सिनेमा आदि.
8. जनसंचार की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए |
उत्तर :- · इसमें फ़ीडबैक
तुरंत प्राप्त नहीं होता।
· इसके संदेशों की प्रकृति सार्वजनिक होती है।
· संचारक और प्राप्तकर्त्ता के बीच कोई सीधा संबंध नहीं होता।
· जनसंचार के लिए एक औपचारिक संगठन की आवश्यकता होती है।
· इसमें ढेर सारे द्वारपाल काम करते हैं।
· इसके संदेशों की प्रकृति सार्वजनिक होती है।
· संचारक और प्राप्तकर्त्ता के बीच कोई सीधा संबंध नहीं होता।
· जनसंचार के लिए एक औपचारिक संगठन की आवश्यकता होती है।
· इसमें ढेर सारे द्वारपाल काम करते हैं।
9. जनसंचार के प्रमुख कार्य कौन-कौनसे हैं?
उत्तर :-· सूचना देना
· शिक्षित करना
· मनोरंजन करना
· शिक्षित करना
· मनोरंजन करना
निगरानी करना
· एजेंडा तय करना
· विचार-विमर्श के लिए मंच उपलब्ध कराना
· एजेंडा तय करना
· विचार-विमर्श के लिए मंच उपलब्ध कराना
10. लाइव से क्या अभिप्राय है?
किसी घटना का
घटना-स्थल से सीधा प्रसारण लाइव कहलाता है |
11. भारत का पहला समाचार वाचक किसे माना जाता है?
11. भारत का पहला समाचार वाचक किसे माना जाता है?
उत्तर :-
देवर्षि नारद
12. जन संचार का सबसे पहला महत्त्वपूर्ण तथा सर्वाधिक विस्तृत माध्यम
कौन सा था?
उत्तर :-
समाचार-पत्र और पत्रिका
13. प्रिंट मीडिया के प्रमुख तीन पहलू कौन-कौन से हैं?
उत्तर :- · समाचारों को संकलित करना
· संपादन करना
· मुद्रण तथा
प्रसारण
14. समाचारों को संकलित करने का कार्य कौन करता है?
उत्तर :- संवाददाता
15. भारत में पत्रकारिता की शुरुआत कब और किससे हुई?
उत्तर :- भारत में पत्रकारिता की शुरुआत सन १७८० में जेम्स आगस्ट हिकी के
बंगाल गजट से हुई जो कलकत्ता से निकला था |
16. हिंदी का पहला साप्ताहिक पत्र किसे माना जाता है?
उत्तर :-
हिंदी का पहला साप्ताहिक पत्र ‘उदंत मार्तंड’ को माना जाता है जो कलकत्ता से पंडित
जुगल
किशोर शुक्ल के संपादन में निकला था |
किशोर शुक्ल के संपादन में निकला था |
17. आजादी से पूर्व कौन-कौन प्रमुख पत्रकार हुए?
उत्तर
:-महात्मा गांधी , लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, मदन मोहन मालवीय, गणेश शंकर
विद्यार्थी, माखनलाल चतुर्वेदी, महावीर प्रसाद
द्विवेदी , प्रताप नारायण मिश्र, बाल मुकुंद गुप्त
आदि हुए |
18. आजादी से पूर्व के प्रमुख समाचार-पत्रों और पत्रिकाओं के नाम
लिखिए |
उत्तर :-
केसरी, हिन्दुस्तान, सरस्वती, हंस, कर्मवीर, आज, प्रताप, प्रदीप, विशाल भारत
आदि |
19. आजादी के बाद की प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं तथा पत्रकारों के नाम
लिखए |
उत्तर :- प्रमुख पत्र
---- नव भारत टाइम्स, जनसत्ता, नई दुनिया, हिन्दुस्तान, अमर उजाला, दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण
आदि |
प्रमुख पत्रिकाएँ – धर्मयुग, साप्ताहिक हिन्दुस्तान, दिनमान , रविवार , इंडिया टुडे, आउट लुक आदि |
प्रमुख पत्रकार- अज्ञेय, रघुवीर सहाय, धर्मवीर भारती, मनोहरश्याम जोशी, राजेन्द्र माथुर, प्रभाष जोशी आदि ।
प्रमुख पत्रिकाएँ – धर्मयुग, साप्ताहिक हिन्दुस्तान, दिनमान , रविवार , इंडिया टुडे, आउट लुक आदि |
प्रमुख पत्रकार- अज्ञेय, रघुवीर सहाय, धर्मवीर भारती, मनोहरश्याम जोशी, राजेन्द्र माथुर, प्रभाष जोशी आदि ।
Monday, May 4, 2020
कक्षा 12 हिन्दी केंद्रिक - पाठ -1 हरिवंश राय बच्चन
कवि
परिचय
हरिवंश राय बच्चन
जीवन
परिचय-कविवर हरिवंश राय बच्चन का जन्म 27 नवंबर सन 1907
को इलाहाबाद में हुआ था। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेजी विषय में
एम०ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की तथा 1942-1952 ई० तक
यहीं पर प्राध्यापक रहे। उन्होंने कैंब्रिज विश्वविद्यालय, इंग्लैंड
से पी-एच०डी० की उपाधि प्राप्त की। अंग्रेजी कवि कीट्स पर उनका शोधकार्य बहुत
चर्चित रहा। वे आकाशवाणी के साहित्यिक कार्यक्रमों से संबंद्ध रहे और फिर विदेश
मंत्रालय में हिंदी विशेषज्ञ रहे। उन्हें राज्यसभा के लिए भी मनोनीत किया गया। 1976
ई० में उन्हें ‘पद्मभूषण’ से अलंकृत किया गया। ‘दो चट्टानें’ नामक रचना पर उन्हें
साहित्य अकादमी ने भी पुरस्कृत किया। उनका निधन 2003
ई० में मुंबई में हुआ।
हरिवंश राय ‘बच्चन’ की प्रमुख रचनाएँ
काव्य-संग्रह- मधुशाला
(1935), मधुबाला (1938), मधुकलश
(1938), निशा-निमंत्रण, एकांत
संगीत, आकुल-अंतर, मिलनयामिनी, सतरंगिणी, आरती
और अंगारे,
नए-पुराने
झरोखे, टूटी-फूटी
कड़ियाँ।
आत्मकथा- क्या
भूलूँ
क्या याद करूं,
नीड़
का निर्माण फिर
फिर, बसेरे
से दूर, दशद्वार
से सोपान तक।
अनुवाद-
हैमलेट, जनगीता, मैकबेथ।
डायरी- प्रवासी
की डायरी।
काव्यगत
विशेषताएँ-
बच्चन
हालावाद के सर्वश्रेष्ठ कवियों में से एक हैं। दोनों महायुद्धों के बीच मध्यवर्ग
के विक्षुब्ध विकल मन को बच्चन ने वाणी दी। उन्होंने छायावाद की लाक्षणिक वक्रता
की बजाय सीधी-सादी जीवंत भाषा और संवेदना से युक्त गेय शैली (गाने योग्य) में अपनी बात कही। उन्होंने व्यक्तिगत जीवन
में घटी घटनाओं की सहज अनुभूति की ईमानदार अभिव्यक्ति कविता के माध्यम से की है।
यही विशेषता हिंदी काव्य-संसार में उनकी प्रसिद्धि का मूलाधार है।
भाषा-शैली- कवि ने अपनी अनुभूतियाँ सहज स्वाभाविक ढंग से
कही हैं। इनकी भाषा आम व्यक्ति के निकट है। बच्चन का कवि-रूप सबसे विख्यात है
उन्होंने कहानी,
नाटक, डायरी
आदि के साथ बेहतरीन आत्मकथा भी लिखी है। इनकी रचनाएँ ईमानदार आत्मस्वीकृति और
प्रांजल शैली के कारण आज भी पठनीय हैं।
कविताओं
का प्रतिपाद्य
एवं सार
आत्मपरिचय
प्रतिपाद्य - कवि
का मानना है कि स्वयं को जानना दुनिया को जानने से ज्यादा कठिन है। समाज से
व्यक्ति का नाता खट्टा-मीठा तो होता ही है। संसार से पूरी तरह निरपेक्ष रहना संभव
नहीं। दुनिया अपने व्यंग्य-बाण तथा शासन-प्रशासन से चाहे जितना कष्ट दे, पर
दुनिया से कटकर मनुष्य रह भी नहीं पाता। क्योंकि उसकी अपनी अस्मिता, अपनी
पहचान का उत्स,
उसका
परिवेश ही उसकी दुनिया है।
कवि अपना
परिचय देते हुए लगातार दुनिया से अपने द्विधात्मक और द्वंद्वात्मक संबंधों का मर्म
उद्घाटित करता चलता है। वह पूरी कविता का सार एक पंक्ति में कह देता है कि दुनिया
से मेरा संबंध प्रीतिकलह का है, मेरा जीवन विरुद्धों का सामंजस्य है-
उन्मादों में अवसाद, रोदन में राग, शीतल वाणी
में आग, विरुद्धों
का विरोधाभासमूलक सामंजस्य साधते-साधते ही वह बेखुदी, वह
मस्ती, वह
दीवानगी व्यक्तित्व में उत्तर आई है कि दुनिया का तलबगार नहीं हूँ, बाजार से गुजरा
हूँ, खरीदार
नहीं हूँ -जैसा कुछ कहने का ठस्सा पैदा हुआ है। यह ठस्सा ही छायावादोत्तर
गीतिकाव्य का प्राण है। किसी असंभव आदर्श की तलाश में सारी
दुनियादारी ठुकराकर उस भाव से कि जैसे दुनिया से इन्हें कोई वास्ता ही नहीं है।
सार -
कवि कहता है कि यद्यपि वह सांसारिक कठिनाइयों से जूझ रहा है, फिर
भी वह इस जीवन से प्यार करता है। वह अपनी आशाओं और निराशाओं से संतुष्ट है। वह
संसार से मिले प्रेम व स्नेह की परवाह नहीं करता क्योंकि संसार उन्हीं लोगों की
जयकार करता है जो उसकी इच्छानुसार व्यवहार करते हैं। वह अपनी धुन में रहने वाला
व्यक्ति है। वह निरर्थक कल्पनाओं में विश्वास नहीं रखता क्योंकि यह संसार कभी भी
किसी की इच्छाओं को पूर्ण नहीं कर पाया है। कवि सुख-दुख, यश-अपयश, हानि-लाभ
आदि द्वंद्वात्मक परिस्थितियों में एक जैसा रहता है। यह संसार मिथ्या है, अत:
यहाँ स्थायी वस्तु की कामना करना व्यर्थ है।
कवि संतोषी
प्रवृत्ति का है। वह अपनी वाणी के जरिये अपना आक्रोश व्यक्त करता है। उसकी व्यथा
शब्दों के माध्यम से प्रकट होती है तो संसार उसे गाना मानता है। संसार उसे कवि
कहता है, परंतु
वह स्वयं को नया दीवाना मानता है। वह संसार को अपने गीतों, द्वंद्वों
के माध्यम से प्रसन्न करने का प्रयास करता है। कवि सभी को सामंजस्य बनाए रखने के
लिए कहता है।
दिन जल्दी
जल्दी ढलता है (एक गीत)
प्रतिपाद्य - निशा-निमंत्रण
से उद्धृत इस गीत में कवि प्रकृति की दैनिक परिवर्तनशीलता के संदर्भ में
प्राणी-वर्ग के धड़कते हृदय को सुनने की काव्यात्मक कोशिश व्यक्त करता है। किसी
प्रिय आलंबन या विषय से भावी साक्षात्कार का आश्वासन ही हमारे प्रयास के पगों की
गति में चंचल तेजी भर सकता है -अन्यथा हम शिथिलता और फिर जड़ता को प्राप्त होने के
अभिशिप्त हो जाते हैं। यह गीत इस बड़े सत्य के साथ समय के गुजरते जाने के एहसास
में लक्ष्य-प्राप्ति के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा भी लिए हुए है।
सार- कवि कहता है कि साँझ घिरते ही पथिक लक्ष्य की
ओर तेजी से कदम बढ़ाने लगता है। उसे रास्ते में रात होने का भय होता है। जीवन-पथ
पर चलते हुए व्यक्ति जब अपने लक्ष्य के निकट होता है तो उसकी उत्सुकता और बढ़ जाती
है। पक्षी भी बच्चों की चिंता करके तेजी से पंख फड़फड़ाने लगते हैं। अपनी संतान से
मिलने की चाह में हर प्राणी आतुर हो जाता है। आशा व्यक्ति के जीवन में नई चेतना भर
देती है। जिनके जीवन में कोई आशा नहीं होती, वे शिथिल हो जाते हैं। उनका जीवन
नीरस हो जाता है। उनके भीतर उत्साह समाप्त हो जाता है। अत: रात जीवन में निराशा
नहीं, अपितु
आशा का संचार भी करती है।
व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न
काव्यांशों को ध्यानपूर्वक पढ़कर सप्रसंग
व्याख्या कीजिए और नीचे दिए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
(क)
आत्मपरिचय
1.
मैं जग – जीवन का भार लिए फिरता हूँ,
फिर भी जीवन में
प्यार लिए फिरता हूँ;
कर दिया किसी ने झंकृत जिनको छूकर
मैं साँसों के दो तार
लिए फिरता हूँ !
मैं स्नेह-सुरा का
पान किया करता हूँ,
मैं कभी न जग का ध्यान
किया करता हूँ,
जग पूछ रहा उनको,
जो जग की गाते,
मैं अपने मन का गान
किया करता हूँ !
शब्दार्थ-
जग-जीवन - सांसारिक गतिविधि।
झंकृत - तारों को बजाकर स्वर निकालना।
सुरा - शराब। स्नेह - प्रेम।
पान-पीना। ध्यान करना
- परवाह करना।
गाते - प्रशंसा करते।
प्रसंग - प्रस्तुत
काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित कविता ‘आत्मपरिचय’ से
उद्धृत है। इसके रचयिता प्रसिद्ध कवि हरिवंशराय बच्चन हैं इस कविता में कवि अपना परिचय देते हुए कहते हैं ।
व्याख्या –
बच्चन जी कहते हैं कि मैं संसार में जीवन का भार उठाकर घूमता रहता हूँ। इसके
बावजूद मेरा जीवन प्यार से भरा-पूरा है। जीवन की समस्याओं के बावजूद कवि के जीवन
में प्यार है। उसका जीवन सितार की तरह है जिसे किसी ने छूकर झंकृत कर दिया है।
फलस्वरूप उसका जीवन संगीत से भर उठा है। उसका जीवन इन्हीं तार रूपी साँसों के कारण
चल रहा है। उसने स्नेह रूपी शराब पी रखी है अर्थात प्रेम किया है तथा बाँटा है।
उसने कभी संसार की परवाह नहीं की। संसार के लोगों की प्रवृत्ति है कि वे उनको
पूछते हैं जो संसार के अनुसार चलते हैं तथा उनका गुणगान करते हैं। कवि अपने मन की
इच्छानुसार चलता है, अर्थात वह वही करता है जो उसका मन कहता है।
विशेष-
·
कवि ने निजी प्रेम को स्वीकार
किया है।
·
संसार के स्वार्थी स्वभाव पर
टिप्पणी की है।
·
‘स्नेह-सुरा’ व ‘साँसों के तार’ में रूपक
अलंकार है।
·
‘जग-जीवन’, ‘स्नेह-सुरा’ में अनुप्रास अलंकार
है।
·
खड़ी बोली का प्रयोग है।
·
‘किया करता हूँ’, ‘लिए
फिरता हूँ’ की आवृत्ति में गीत की मस्ती है।
प्रश्न
(क)
जगजीवन का भार लिए फिरने से कवि का क्या आशय हैं? ऐसे में भी वह
क्या कर लेता है?
(ख)
‘स्नेह-सुरा’ से कवि का क्या आशय हैं?
(ग) आशय
स्पष्ट कीजिए- ‘जग पूछ रहा उनको, जो जग की गाते’।
(घ)
‘साँसों के तार’ से कवि का क्या तात्पर्य हैं? आपके विचार से उन्हें किसने झंकृत किया होगा?
उत्तर –
(क) ‘जगजीवन का भार लिए फिरने’ से
कवि का आशय है-सांसारिक रिश्ते-नातों और दायित्वों को निभाने की जिम्मेदारी, जिन्हें
न चाहते हुए भी कवि को निभाना पड़ रहा है। ऐसे में भी उसका जीवन प्रेम से भरा-पूरा
है और वह सबसे प्रेम करना चाहता है।
(ख) ‘स्नेह-सुरा’ से आशय है-प्रेम
की मादकता और उसका पागलपन, जिसे कवि हर क्षण महसूस करता है और उसका मन
झंकृत होता रहता है।
(ग) ‘जग पूछ रहा उनको, जो
जग की गाते’ का आशय है-यह संसार उन लोगों की स्तुति करता है जो संसार के अनुसार
चलते हैं और उसका गुणगान करते है।
(घ) ‘साँसों के तार’ से कवि का
तात्पर्य है-उसके जीवन में भरा प्रेम रूपी तार, जिनके कारण उसका जीवन चल रहा है।
मेरे विचार से उन्हें कवि की प्रेयसी ने झंकृत किया होगा।
2.
मैं निज उर के उद्गार लिए फिरता हूँ
मैं निज उर के उपहार लिए फिरता हूँ
है यह अपूर्ण संसार न मुझको भाता
मैं स्वप्नों का संसार लिए फिरता हूँ।
मैं जला हृदय में अग्नि, दहा
करता हूँ
सुख-दुख दोनों में मग्न रहा करता हूँ,
जग भव-सागर तरने को नाव बनाए,
मैं भव-मौजों पर मस्त बहा करता हूँ।
शब्दार्थ
-उदगार-दिल के भाव। उपहार-भेंट।
भाता-अच्छा लगता। स्वप्नों का संसार - कल्पनाओं की दुनिया।
दहा-जला। भव-सागर - संसार रूपी
सागर। मौज-लहर।
प्रसंग-
प्रस्तुत
काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में
संकलित कविता ‘आत्मपरिचय’ से अवतरित है। इसके रचयिता प्रसिद्ध गीतकार हरिवंशराय
बच्चन हैं। इस कविता में कवि जीवन को जीने की शैली बताता है। साथ ही दुनिया से
अपने द्वंद्वात्मक संबंधों को उजागर करता है।
व्याख्या –
कवि अपने मन की भावनाओं को दुनिया के सामने
कहने की कोशिश करता है। उसे खुशी के जो उपहार मिले हैं, उन्हें
वह साथ लिए फिरता है। उसे यह संसार अधूरा लगता है। इस कारण यह उसे पसंद नहीं है।
वह अपनी कल्पना का संसार लिए फिरता है। उसे प्रेम से भरा संसार अच्छा लगता है। .
वह कहता है
कि मैं अपने हृदय में आग जलाकर उसमें जलता हूँ अर्थात मैं प्रेम की जलन को स्वयं
ही सहन करता हूँ। प्रेम की दीवानगी में मस्त होकर जीवन के जो सुख-दुख आते हैं, उनमें
मस्त रहता हूँ। यह संसार आपदाओं का सागर है। लोग इसे पार करने के लिए कर्म रूपी
नाव बनाते हैं,
परंतु
कवि संसार रूपी सागर की लहरों पर मस्त होकर बहता है। उसे संसार की कोई चिंता नहीं
है।
विशेष-
कवि ने प्रेम की
मस्ती को प्रमुखता दी है।
व्यक्तिवादी
विचारधारा की प्रमुखता है।
‘स्वप्नों
का संसार’ में अनुप्रास तथा ‘भव-सागर’ और ‘भव मौजों’ में रूपक अलंकार है।
खड़ी बोली का
स्वाभाविक प्रयोग है।
तत्सम शब्दावली की
बहुलता है।
श्रृंगार रस की
अभिव्यक्ति है।
प्रश्न
(क) कवि के
ह्रदय में कौन-सी अग्नि जल रही हैं? वह व्यथित क्यों है?
(ख)
‘निज उर के उद्गार व उपहार’ से कवि का क्या तात्पर्य हैं? स्पष्ट
कीजिए।
(ग) कवि
को संसार अच्छा क्यों नहीं लगता?
(घ)
संसार में कष्टों को सहकर भी खुशी का माहौल कैसे बनाया जा सकता हैं?
उत्तर –
(क)
कवि के हृदय में एक विशेष आग (प्रेमाग्नि) जल रही है। वह प्रेम की वियोगावस्था में
होने के कारण व्यथित है।
(ख)
‘निज उर के उद्गार’ का अर्थ यह है कि कवि अपने हृदय की भावनाओं को व्यक्त कर रहा
है। ’निज उर के उपहार’ से तात्पर्य कवि की खुशियों से है जिसे वह संसार में बाँटना
चाहता है।
(ग)
कवि को संसार इसलिए अच्छा नहीं लगता क्योंकि उसके दृष्टिकोण के अनुसार संसार अधूरा
है। उसमें प्रेम नहीं है। वह बनावटी व झूठा है।
(घ)
संसार में रहते हुए हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि कष्टों को सहना पड़ेगा। इसलिए
मनुष्य को हँसते हुए जीना चाहिए।
3.
मैं यौवन का उन्माद लिए फिरता हूँ,
उन्मादाँ’ में अवसाद लिए फिरता हूँ,
जो मुझको बाहर हँसा, रुलाती
भीतर,
मैं , हाय, किसी
की याद लिए फिरता हूँ !
कर यत्न मिटे सब, सत्य
किसी ने जाना?
नादान वहीं हैं, हाय , जहाँ पर दाना !
फिर मूढ़ न क्या जग, जो
इस पर भी सीखे?
मैं सीख रहा हूँ, सीखा
ज्ञान भुलाना !
शब्दार्थ –
यौवन - जवानी। उन्माद - पागलपन।
अवसाद - उदासी, खेद। यत्न - प्रयास।
नादान-नासमझ, अनाड़ी। दाना-चतुर, ज्ञानी।
मूढ़ - मूर्ख। जग - संसार।
प्रसंग-प्रस्तुत
काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में
संकलित कविता ‘आत्मपरिचय’ से उद्धृत है। इसके रचयिता प्रसिद्ध गीतकार हरिवंशराय
बच्चन हैं। इस कविता में कवि जीवन को जीने की शैली बताता है। ।
व्याख्या-
कवि कहता
है कि उसके मन पर जवानी का पागलपन सवार है। वह उसकी मस्ती में घूमता रहता है। इस
दीवानेपन के कारण उसे अनेक दुख भी मिले हैं। वह इन दुखों को उठाए हुए घूमता है।
कवि को जब किसी प्रिय की याद आ जाती है तो उसे बाहर से हँसा जाती है, परंतु
उसका मन रो देता है अर्थात याद आने पर कवि-मन व्याकुल हो जाता है।
कवि कहता
है कि इस संसार में लोगों ने जीवन-सत्य को जानने की कोशिश की, परंतु
कोई भी सत्य नहीं जान पाया। इस कारण हर व्यक्ति नादानी करता दिखाई देता है। ये
मूर्ख (नादान) भी वहीं होते हैं जहाँ समझदार एवं चतुर होते हैं। हर व्यक्ति वैभव, समृद्ध, भोग-सामग्री
की तरफ भाग रहा है। हर व्यक्ति अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए भाग रहा है। वे
इतना सत्य भी नहीं सीख सके। कवि कहता है कि मैं सीखे हुए ज्ञान को भूलकर नई बातें
सीख रहा हूँ अर्थात सांसारिक ज्ञान की बातों को भूलकर मैं अपने मन के कहे अनुसार
चलना सीख रहा हूँ।
विशेष-
पहली चार पंक्तियों में कवि ने
आत्माभिव्यक्ति की है तथा अंतिम चार में सांसारिक जीवन के विषय में बताया है।
‘उन्मादों
में अवसाद’ में विरोधाभास अलंकार है।
‘लिए
फिरता हूँ’ की आवृत्ति से गेयता का गुण उत्पन्न हुआ है।
‘कर
यत्न मिटे सब,
सत्य
किसी ने जाना’ पंक्ति में अनुप्रास अलंकार है।
‘नादान
वहीं है, हाय, जहाँ
पर दाना’ में सूक्ति जैसा प्रभाव है।
खड़ी बोली है।
प्रश्न
(क)
‘यौवन का उन्माद’ का तात्यय बताइए।
(ख) कवि की मनःस्थिति कैसी है?
(ग)
‘नादान’ कौन है तथा क्यों?
(घ)
संसार के बारे में कवि क्या कह रहा है?
(डा)
कवि सीखे ज्ञान को क्यों
भुला रहा है?
उत्तर –
(क)
कवि प्रेम का दीवाना है। उस पर प्रेम का नशा छाया हुआ है, परंतु
उसकी प्रिया उसके पास नहीं है, अत: वह निराश भी है।
(ख)
कवि संसार के समक्ष हँसता दिखाई देता है, परंतु अंदर से वह रो रहा है
क्योंकि उसे अपनी प्रिया की याद आ जाती है।
(ग)
संसार के लोग नादान हैं। ये
मूर्ख (नादान) भी वहीं होते हैं जहाँ समझदार एवं चतुर लोग होते हैं।
हर व्यक्ति वैभव, समृद्ध, भोग-सामग्री की तरफ भाग रहा है।
हर व्यक्ति अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए भाग रहा है।
(घ)
कवि संसार के बारे में कहता है कि यहाँ लोग जीवन-सत्य जानने के लिए प्रयास करते
हैं, परंतु
वे कभी सफल नहीं हुए। जीवन का सच आज तक कोई नहीं जान पाया।
(ड)
कवि संसार से सीखे ज्ञान को भुला रहा है क्योंकि उससे जीवन-सत्य की प्राप्ति नहीं
होती, जिससे
वह अपने मन के कहे अनुसार चल सके।
4.
मैं और, और जग और, कहाँ
का नाता,
मैं बना-बना कितने जग रोज मिटाता,
जग जिस पृथ्वी पर जोड़ा करता वैभव,
मैं प्रति पग से उस पृथ्वी को ठुकराता!
मैं निज रोदन में राग लिए फिरता हूँ,
शीतल वाणी में आग लिए फिरता हूँ,
हों जिस पर भूपों के प्रासाद निछावर,
मैं वह खंडहर का भाग लिए फिरता हूँ।
शब्दार्थ-
नाता - संबंध। वैभव – समृद्धि । पग - पैर।
रोदन-रोना। राग-प्रेम।
आग -
जोश। भूप - राजा।
प्रासाद - महल। निछावर - कुर्बान।
खंडहर - टूटा
हुआ भवन। भाग-हिस्सा।
प्रसंग-
प्रस्तुत
काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में
संकलित कविता ‘आत्मपरिचय’ से उद्धृत है। इसके रचयिता प्रसिद्ध गीतकार हरिवंशराय
बच्चन हैं। इस कविता में कवि जीवन को जीने की शैली बताता है। साथ ही दुनिया से
अपने द्वंद्वात्मक संबंधों को उजागर करता है।
व्याख्या-
कवि कहता
है कि मुझमें और संसार-दोनों में कोई संबंध नहीं है। संसार के साथ मेरा टकराव चल
रहा है। कवि अपनी कल्पना के अनुसार संसार का निर्माण करता है, फिर
उसे मिटा देता है। यह संसार इस धरती पर सुख के साधन एकत्रित करता है, परंतु
कवि हर कदम पर धरती को ठुकराया करता है। अर्थात वह जिस संसार में रह रहा है, उसी
के प्रतिकूल आचार-विचार रखता है।
कवि कहता
है कि वह अपने रोदन में भी प्रेम लिए फिरता है। उसकी शीतल वाणी में भी आग समाई हुई
है अर्थात उसमें असंतोष झलकता है। उसका जीवन प्रेम में निराशा के कारण खंडहर-सा है, फिर
भी उस पर राजाओं के महल न्योछावर होते हैं। ऐसे खंडहर का वह एक हिस्सा लिए घूमता
है जिसे महल पर न्योछावर कर सके।
विशेष-
कवि ने अपनी अनुभूतियों का परिचय दिया है।
‘कहाँ
का नाता’ में प्रश्न अलंकार है।
‘रोदन
में राग’ और ‘शीतल वाणी में आग’ में विरोधाभास अलंकार तथा ‘बना-बना’ में पुनरुक्ति
प्रकाश अलंकार है।
‘और’
की आवृत्ति में यमक अलंकार है।
‘कहाँ
का’ और ‘जग जिस पृथ्वी पर’ में अनुप्रास अलंकार की छटा है।
श्रृंगार रस की अभिव्यक्ति है तथा खड़ी बोली
का प्रयोग है।
प्रश्न
(क) कवि
और संसार के बीच क्या संबंध हैं?
(ख) कवि
और संसार के बीच क्या विरोधी स्थिति है?
(ग)
‘शीतल वाणी में’ आग लिए फिरता हूँ’ -से कवि का क्या तात्पर्य है?
(घ) कवि
के पास ऐसा क्या है जिस पर बड़े-बड़े राजा न्योछावर हो जाते हैं?
उत्तर –
(क) कवि और संसार के बीच किसी
प्रकार का संबंध नहीं है। संसार में संग्रह वृत्ति है, कवि
में नहीं है। वह अपनी मजी के संसार बनाता व मिटाता है।
(ख) कवि को सांसारिक आकर्षणों का
मोह नहीं है। वह इन्हें ठुकराता है। इसके अलावा वह अपने अनुसार व्यवहार करता है, जबकि
संसार में लोग अपार धन-संपत्ति एकत्रित करते हैं तथा सांसारिक नियमों के अनुरूप
व्यवहार करते हैं।
(ग) उक्त पंक्ति से तात्पर्य यह
है कि कवि अपनी शीतल व मधुर आवाज में भी जोश, आत्मविश्वास, साहस, दृढ़ता
जैसी भावनाएँ बनाए रखता है ताकि वह दूसरों को भी जाग्रत कर सके।
(घ) कवि के पास प्रेम महल के
खंडहर का अवशेष (भाग) है। संसार के बड़े-बड़े राजा प्रेम के आवेग में राज-गद्दी भी
छोड़ने के लिए तैयार हो जाते हैं।
5.
मैं रोया, इसको तुम कहाते हो गाना,
मैं फूट पडा, तुम कहते, छंद
बनाना,
क्यों कवि
कहकर संसार मुझे अपनाए,
मैं दुनिया का हूँ एक क्या दीवाना”
मैं दीवानों का वेश लिए फिरता हूँ
मैं मादकता नि:शेष लिए फिरता हूँ ,
जिसको सुनकर जग झूम झुके लहराए,
मैं मस्ती का संदेश लिए फिरता हूँ ।
शब्दार्थ-
फूट पड़ा - जोर से रोया। दीवाना-पागल। मादकता-मस्ती। नि:शेष-संपूर्ण।
प्रसंग-
प्रस्तुत
काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में
संकलित कविता ‘आत्मपरिचय’ से उद्धृत है। इसके रचयिता प्रसिद्ध गीतकार हरिवंश राय
बच्चन हैं। इस कविता में कवि जीवन को जीने की अपनी शैली बताता है। साथ ही दुनिया
से अपने द्वंद्वात्मक संबंधों को उजागर करता है।
व्याख्या-
कवि कहता
है कि प्रेम की पीड़ा के कारण उसका मन रोता है। अर्थात हृदय की व्यथा शब्द रूप में
प्रकट हुई। उसके रोने को संसार गाना मान बैठता है। जब वेदना अधिक हो जाती है तो वह
दुख को शब्दों के माध्यम से व्यक्त करता है। संसार इस प्रक्रिया को छंद बनाना कहती
है। कवि प्रश्न करता है कि यह संसार मुझे कवि के रूप में अपनाने के लिए तैयार
क्यों है? वह
स्वयं को नया दीवाना कहता है जो हर स्थिति में मस्त रहता है।
समाज उसे
दीवाना क्यों नहीं स्वीकार करता। वह दीवानों का रूप धारण करके संसार में घूमता
रहता है। उसके जीवन में जो मस्ती शेष रह गई है, उसे लिए वह घूमता रहता है। इस
मस्ती को सुनकर सारा संसार झूम उठता है। कवि के गीतों की मस्ती सुनकर लोग प्रेम
में झुक जाते हैं तथा आनंद से झूमने लगते हैं। मस्ती के संदेश को लेकर कवि संसार
में घूमता है जिसे लोग गीत समझने की भूल कर बैठते हैं।
विशेष-
कवि मस्त प्रकृति का व्यक्ति है। यह मस्ती
उसके गीतों से फूट पड़ती है।
‘कवि
कहकर’ तथा ‘झूम झुके’ में अनुप्रास अलंकार और ‘क्यों कवि कवि कहकर संसार मुझे अपनाए’
में प्रश्न अलंकार है।
खड़ी बोली का स्वाभाविक प्रयोग है।
‘मैं’
शैली के प्रयोग से कवि ने अपनी बात कही है।
श्रृंगार रस की अभिव्यक्ति हुई है।
‘लिए
फिरता हूँ’ की आवृत्ति गेयता में वृद्धि करती है।
तत्सम शब्दावली की प्रमुखता है।
प्रश्न
(क)
कवि की किस बात को संसार
क्या समझता हैं?
(ख)
कवि स्वयं को क्या कहना पसंद करता है और क्यों?
(ग)
कवि की मनोदशा कैसी है?
(घ)
कवि संसार को क्या संदेश देता है? संसार पर उसकी क्या प्रतिक्रिया होती है?
उत्तर –
(क)
कवि कहता है कि जब वह विरह की पीड़ा के कारण रोने लगता है तो संसार उसे गाना समझता
है। अत्यधिक वेदना जब शब्दों के माध्यम से फूट पड़ती है तो उसे छंद बनाना समझा
जाता है।
(ख)
कवि स्वयं को कवि की बजाय दीवाना कहलवाना पसंद करता है क्योंकि वह अपनी असलियत
जानता है। उसकी कविताओं में दीवानगी है।
(ग)
कवि की मनोदशा दीवानों जैसी है। वह मस्ती में चूर है। उसके गीतों पर दुनिया झूमती
है।
(घ)
कवि संसार को प्रेम की मस्ती का संदेश देता है। उसके इस संदेश पर संसार झूमता है, झुकता
है तथा आनंद से लहराता है।
(ख) एक
गीत
1.
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!
हो जाए न पथ में रात कहीं,
मंजिल भी तो है दूर नहीं-
यह सोच थका दिन का पंथी भी जल्दी-जल्दी
चलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!
शब्दार्थ-
ढलता - समाप्त होता। पथ - रास्ता।
मंजिल - लक्ष्य।
पंथी - यात्री।
प्रसंग-
प्रस्तुत
काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में
संकलित गीत ‘दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!’ से उद्धृत है। इसके रचयिता हरवंशराय बच्चन हैं। इन पंकीटियों में कवि ने प्रेम की व्याकुलता
का वर्णन किया है।
व्याख्या-
कवि जीवन
की व्याख्या करता है। वह कहता है कि शाम होते देखकर यात्री तेजी से चलता है कि
कहीं रास्ते में रात न हो जाए। उसकी मंजिल समीप ही होती है इस कारण वह थकान होने
के बावजूद भी जल्दी-जल्दी चलता है। लक्ष्य-प्राप्ति के लिए उसे दिन जल्दी ढलता
प्रतीत होता है। रात होने पर पथिक को अपनी यात्रा बीच में ही समाप्त करनी पड़ेगी, इसलिए
थकित शरीर में भी उसका उल्लसित, तरंगित और आशान्वित मन उसके पैरों की गति कम
नहीं होने देता।
विशेष-
कवि ने जीवन की क्षणभंगुरता व प्रेम की
व्यग्रता को व्यक्त किया है।
‘जल्दी-जल्दी’
में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।
भाषा सरल, सहज और भावानुकूल है, जिसमें
खड़ी बोली का प्रयोग है।
जीवन को बिंब के रूप में व्यक्त किया है।
वियोग श्रृंगार रस की अनुभूति है।
प्रश्न
(क)
‘हो जाए न पथ में’- यहाँ किस पथ की ओर कवि ने संकेत किया
है?
(ख)
पथिक के मन में क्या आशंका
है?
(ग)
पथिक के तेज चलने का क्या कारण है?
(घ)
कवि दिन के बारे में क्या बताता है?
उत्तर –
(क) ‘हो जाए न पथ में”-के माध्यम
से कवि अपने जीवन-पथ की ओर संकेत कर रहा है, जिस पर वह अकेले चल रहा है।
(ख) पथिक के मन में आशंका है कि राह चलते-चलते
मंजिल आने से पहले कहीं रात न हो जाए।
(ग) पथिक तेज इसलिए चलता है
क्योंकि शाम होने वाली है। उसे अपना लक्ष्य समीप नजर आता है। रात न हो जाए, इसलिए
वह जल्दी चलकर अपनी मंजिल तक पहुँचना चाहता है।
(घ) कवि कहता है कि दिन
जल्दी-जल्दी ढलता है। दूसरे शब्दों में, समय परिवर्तनशील है। वह किसी की
प्रतीक्षा नहीं करता ।
2.
बच्चे प्रत्याशा में होंगे,
नीड़ों से झाँक रहे होंगे-
यह ध्यान परों में चिड़ियों के भरता कितनी
चंचलता है !
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है !
शब्दार्थ-
प्रत्याशा-आशा। नीड़-घोंसला।
पर-पंख। चंचलता-अस्थिरता।
प्रसंग-
प्रस्तुत
काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में
संकलित गीत ‘दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!’ से उद्धृत है। इस गीत के रचयिता हरिवंश राय
बच्चन हैं। इस गीत में कवि ने एकाकी जीवन की कुंठा तथा प्रेम की व्याकुलता का
वर्णन किया है।
व्याख्या-
कवि
प्रकृति के माध्यम से उदाहरण देता है कि चिड़ियाँ भी दिन ढलने पर चंचल हो उठती
हैं। वे शीघ्रातिशीघ्र अपने घोंसलों में पहुँचना चाहती हैं। उन्हें ध्यान आता है
कि उनके बच्चे भोजन आदि की आशा में घोंसलों से बाहर झाँक रहे होंगे। यह ध्यान आते
ही उनके पंखों में तेजी आ जाती है और वे जल्दी-जल्दी अपने घोंसलों में पहुँच जाना
चाहती हैं।
विशेष-
उक्त काव्यांश
में कवि कह रहा है कि वात्सल्य भाव की व्यग्रता सभी प्राणियों में पाई जाती है।
पक्षियों
के बच्चों द्वारा घोंसलों से झाँका जाना गति एवं दृश्य बिंब उपस्थित करता है।
तत्सम
शब्दावली की प्रमुखता है।
‘जल्दी-जल्दी’ में पुनरुक्ति
प्रकाश अलंकार है।
सरल, सहज
और भावानुकूल खड़ी बोली में सार्थक अभिव्यक्ति है।
प्रश्न
(क)
बच्चे किसका इंतजार कर रहे होंगे तथा क्यों?
(ख)
चिड़ियों के घोंसलों में किस दृश्य की कल्पना की गई है?
(ग)
चिड़ियों के परों में चंचलता आने का क्या कारण है?
(घ)
इस अंश में
किस मानव-सत्य को दर्शाया
गया है?
उत्तर –
(क)
बच्चे अपने माता-पिता के आने का इंतजार कर रहे होंगे क्योंकि चिड़ियां (माँ) के
पहुँचने पर ही उनके भोजन इत्यादि की पूर्ति होगी।
(ख)
कवि चिड़ियों के घोंसलों में उस दृश्य की कल्पना करता है जब बच्चे माँ-बाप की
प्रतीक्षा में अपने घरों से झाँकने लगते हैं।
(ग)
चिड़ियों के परों में चंचलता इसलिए आ जाती है क्योंकि उन्हें अपने बच्चों की चिंता
में बेचैनी हो जाती है। वे अपने बच्चों को भोजन, स्नेह व
सुरक्षा देना चाहती हैं।
(घ)
इस अंश से कवि माँ के वात्सल्य भाव का सजीव वर्णन कर रहा है। वात्सल्य प्रेम के कारण
मातृ-मन आशंका से भर उठता है।
3.
मुझसे मिलने को कौन विकल?
मैं होऊँ किसके हित चंचल?
यह प्रश्न शिथिल करता पद को, भरता
उर में विह्वलता
है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!
शब्दार्थ-
विकल-व्याकुल। हित-लिए, वास्ते। चंचल-क्रियाशील। शिथिल-ढीला।
पद-पैर।
उर-हृदय। विह्वलता-बेचैनी, भाव
आतुरता।
प्रसंग-
प्रस्तुत
काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में
संकलित गीत ‘दिन जल्दी-जल्दी ढलता है’ से उद्धृत है। इस गीत के रचयिता हरिवंश राय
बच्चन हैं। इस गीत में कवि ने एकाकी जीवन की कुंठा तथा प्रेम की व्याकुलता का
वर्णन किया है।
व्याख्या-
कवि कहता
है कि इस संसार में वह अकेला है। इस कारण उससे मिलने के लिए कोई व्याकुल नहीं होता, उसकी
उत्कंठा से प्रतीक्षा नहीं करता, वह भला किसके लिए भागकर घर जाए। कवि के मन
में प्रेम-तरंग जगने का कोई कारण नहीं है। कवि के मन में यह प्रश्न आने पर उसके
पैर शिथिल हो जाते हैं। उसके हृदय में यह व्याकुलता भर जाती है कि दिन ढलते ही रात
हो जाएगी। रात में एकाकीपन और उसकी प्रिया की वियोग-वेदना उसे अशांत कर देगी। इससे
उसका हृदय पीड़ा से बेचैन हो उठता है।
विशेष-
एकाकी जीवन बिताने वाले व्यक्ति की मनोदशा का
वास्तविक चित्रण किया गया है।
सरल, सहज और भावानुकूल खड़ी बोली का
प्रयोग है।
‘मुझसे
मिलने’ में अनुप्रास अलंकार तथा ‘मैं होऊँ किसके हित चंचल?’ में
प्रश्नालंकार है।
तत्सम-प्रधान शब्दावली है जिसमें अभिव्यक्ति
की सरलता है।
प्रश्न
(क)
कवि के मन में कौन-से प्रश्न उठते हैं?
(ख)
कवि की व्याकुलता का क्या कारण है?
(ग)
कवि के कदम शिथिल क्यों हो जाते हैं?
(घ)
‘मैं होऊँ किसके हित चचल?’ का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर –
(क)
कवि के मन में निम्नलिखित प्रश्न उठते हैं-
(i)
उससे
मिलने के लिए कौन उत्कंठित होकर प्रतीक्षा कर रहा है?
(ii)
वह
किसके लिए चंचल होकर कदम बढ़ाए?
(ख)
कवि के हृदय में व्याकुलता है क्योंकि वह अकेला है। प्रिया के वियोग की वेदना इस
व्याकुलता को प्रगाढ़ कर देती है। इस कारण उसके मन में अनेक प्रश्न उठते हैं।
(ग)
कवि अकेला है। उसका इंतजार करने वाला कोई नहीं है। इस कारण कवि के मन में भी
उत्साह नहीं है,
इसलिए
उसके कदम शिथिल हो जाते हैं।
(घ)
‘मैं होऊँ किसके हित चंचल’ का आशय यह है कि कवि अपनी पत्नी से दूर होकर एकाकी जीवन
बिता रहा है। उसकी प्रतीक्षा करने वाला कोई नहीं है, इसलिए वह
किसके लिए बेचैन होकर घर जाने की चंचलता दिखाए।
काव्य-सौंदर्य बोध संबंधी प्रश्न
(क)
आत्मपरिचय
1.
मैं जग-जीवन का भार लिए फिरता हूँ,
फिर
भी जीवन मैं प्यार लिए फिरता हूँ,
कर दिया किसी ने झंकृत जिनको छूकर
मैं साँसों के दो तार लिए फिरता हूँ।
मैं स्नेह-सुरा का पान किया करता हूँ,
मैं कभी न जग का ध्यान किया करता हूँ,
जग पूछ रहा उनको, जो
जग की गाते,
मैं अपने मन का गान किया करता हूँ।
प्रश्न
(क)
‘फिर भी’ और ‘किसी ने’ का प्रयोग-वैशिष्ट्य बताइए।
(ख)
काव्यांश
का भाव–सौंदर्य स्पष्ट कीजिए ।
(ग)
काव्यांश
की अलंकार
योजना बताइए।
उत्तर –
(क)
‘फिर भी’ पद का अर्थ यह है कि संसार में बहुत परेशानियाँ हैं। ‘किसी ने’ पद का
अर्थ है-पत्नी,
प्रियजन
या गुरु।
(ख)
कवि अपने प्रेम को सार्वजनिक तौर पर स्वीकार करता है। वह कष्टों के बावजूद संसार
को प्रेम बाँटता है। वह सांसारिक नियमों की परवाह नहीं करता। वह संसार की स्वार्थ
प्रवृत्ति पर कटाक्ष करता है।
(ग)
कवि ने ‘जग-जीवन’, ‘साँसों के तार’, ‘स्नेह-सुरा’
में रूपक अलंकार का प्रयोग किया है। ‘किया करता’ तथा ‘जो जग’ में अनुप्रास अलंकार
है।
2.
मैं
जला हृदय में अग्नि, दहा करता हूँ,
सुख-दुख दोनों में मग्न रहा करता हूँ ,
जग भव-सागर तरने की नाव बनाए,
मैं भव-मौजों पर मस्त बहा करता हूँ।
प्रश्न
(क)
काव्यांश
का भाव–सौंदर्य
स्पष्ट कीजिए ।
(ख)
रस एव अलंकार
सौंदर्य
बताइए।
(ग)
प्रयुक्त भाषा–शिल्प
पर टिप्पणी कीजिए ।
उत्तर –
(क) इस काव्यांश में कवि ने प्रेम
की दीवानगी को व्यक्त किया है। वह हर स्थिति में मस्त रहने की बात कहता है। वह
संसार के कष्टों में ही मस्ती-भरा जीवन जीता है।
(ख) कवि
ने श्रृंगार रस की उन्मुक्त अभिव्यक्ति की है।
‘भव-सागर’ व ‘भव-मौजों’ में रूपक
अलंकार है।
‘नाव’ व ‘अग्नि’ में
रूपकातिशयोक्ति अलंकार है।
‘दोनों में मग्न रहा करता हूँ’
में अनुप्रास अलंकार है।
(ग) भावानुकूल, सहज
एवं सरल खड़ी बोली में सजीव अभिव्यक्ति है।
भाषा में
तत्सम शब्दावली की प्रधानता है एवं प्रवाहमयता है।
गेयता का
गुण विद्यमान है।
3.
मैं और, और जग और, कहाँ
का नाता,
में बना-बना कितने जग रोज मिटाता,
जग जिस पृथ्वी पर जोड़ा करता वैभव,
मैं प्रति पग से उस पृथ्वी को ठुकराता!
मैं निज रोदन में राग लिए फिरता हूँ,
शीतल वाणी में आग लिए फिरता हूँ,
हों जिस पर भूपों के प्रासाद निछावर,
मैं वह खंडहर का भाग लिए फिरता हूँ।
प्रश्न
(क)
‘और जग और’ का भाव स्पष्ट कीजिए।
(ख)
‘शीतल वाणी में आग लिए फिरता हूँ’ का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ग)
काव्यांश का शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर –
(क) ‘और जग और’ का अर्थ यह है कि
संसार कवि की भावनाओं को नहीं समझता। कवि प्रेम की दुनिया में खोया रहता है, जबकि
संसार संग्रहवृत्ति में विश्वास रखता है। अत: दोनों में कोई संबंध नहीं है, एकरूपता
नहीं है।
(ख) इस पंक्ति का भाव यह है कि
कवि अपनी शीतल और मधुर आवाज में भी जोश, आत्मविश्वास, साहस, दृढ़ता
जैसी भावनाएँ बनाए रखता है ताकि वह अन्य लोगों को भी जाग्रत कर सके।
(ग)
कवि ने
श्रृंगार रस की सुंदर अभिव्यक्ति की है।
‘जग जिस पृथ्वी पर जोड़ा करता वैभव’
में विशेषण विपर्यय है।
‘कहाँ का नाता’ में प्रश्न अलंकार
है तथा ‘बना-बना’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
अनुप्रास
अलंकार की छटा है-‘कहाँ का’, ‘जग जिस’, ‘पृथ्वी पर’, ‘प्रति
पग’।
‘और’ शब्द की आवृत्ति प्रभावी है।
यहाँ यमक अलंकार है जिसके अर्थ हैं -भिन्न, व (योजक)।
‘लिए फिरता हूँ’ की आवृत्ति से
मस्ती एवं लयात्मकता आई है।
खड़ी बोली
का प्रभावी प्रयोग है।
(ख)
एक गीत
1.
दिन जल्दी-जल्दी ढलता हैं!
हो जाए न पथ में रात कहीं,
मंजिल भी तो है दूर नहीं-
यह सोच थका दिन का पथ भी जल्दी-जल्दी चलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है !
बच्चे प्रत्याशा में होंगे,
नीड़ों से झाँक रहे होंगे-
यह ध्यान परों में चिड़ियों के भरता कितनी चंचलता
है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!
प्रश्न
(क)
काव्यांश की भाषागत दो विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
(ख)
भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए:
बच्चे प्रत्याशा में होंगे,
नीड़ों से झाँक रहे होंगे।
(ग)
‘पथ”, ‘मंजिल’
और ‘रात’ शब्द किसके प्रतीक हैं?
उत्तर –
(क)
इस काव्यांश की भाषा सरल, संगीतमयी व प्रवाहमयी है। इसमें दृश्य बिंब
है।’जल्दी-जल्दी’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
(ख)
इन पंक्तियों में पक्षियों के वात्सल्य भाव को दर्शाया गया है। बच्चे माँ-बाप के
आने की प्रतीक्षा में घोंसलों से झाँकने लगते हैं। वे माँ की ममता के लिए व्यग्र
हैं।
(ग)
‘पथ’, ‘मंजिल’
और ‘रात’ क्रमश: ‘मानव-जीवन के संघर्ष’, ‘परमात्मा से मिलने की जगह’ तथा
‘मृत्यु’ के प्रतीक हैं।
पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न
कविता के साथ
प्रश्न 1:
कविता एक ओर जग-जीवन का भार लिए
घूमने की बात करती है और दूसरी ओर ‘मैं कभी न जग का ध्यान किया करता हूँ’ -विपरीत से
लगते इन कथनों का क्या आशय है?
उत्तर –
जग-जीवन का
भार लेने से कवि का अभिप्राय यह है कि वह सांसारिक दायित्वों का निर्वाह कर रहा
है। आम व्यक्ति से वह अलग नहीं है तथा सुख-दुख, हानि-लाभ आदि को झेलते हुए अपनी
यात्रा पूरी कर रहा है। दूसरी तरफ कवि कहता है कि वह कभी संसार की तरफ ध्यान नहीं
देता। यहाँ कवि सांसारिक दायित्वों की अनदेखी की बात नहीं करता। वह संसार की
निरर्थक बातों पर ध्यान न देकर केवल प्रेम पर केंद्रित रहता है। आम व्यक्ति
सामाजिक बाधाओं से डरकर कुछ नहीं कर पाता। कवि सांसारिक बाधाओं की परवाह नहीं
करता। अत: इन दोनों पंक्तियों के अपने निहितार्थ हैं। ये एक-दूसरे के विरोधी न होकर
पूरक हैं।
प्रश्न 2:
जहाँ पर दाना रहते हैं, वहीं
नादान भी होते हैं-कवि ने ऐसा क्यों कहा होगा?
उत्तर –
नादान यानी मूर्ख व्यक्ति सांसारिक मायाजाल
में उलझ जाता है। मनुष्य इस मायाजाल को निरर्थक मानते हुए भी इसी के चक्कर में फसा
रहता है। संसार असत्य है। मनुष्य इसे सत्य मानने की नादानी कर बैठता है और मोक्ष
के लक्ष्य को भूलकर संग्रहवृत्ति में पड़ जाता है। इसके विपरीत, कुछ
ज्ञानी लोग भी समाज में रहते हैं जो मोक्ष के लक्ष्य को नहीं भूलते। अर्थात संसार
में हर तरह के लोग रहते हैं।
प्रश्न 3:
मैं और, और जग और कहाँ का नाता- पंक्ति
में ‘और’ शब्द की विशेषता बताइए।
उत्तर –
यहाँ ‘और’
शब्द का तीन बार प्रयोग हुआ है। अत: यहाँ यमक अलंकार है। पहले ‘और’ में कवि स्वयं
को आम व्यक्ति से अलग बताता है। वह आम आदमी की तरह भौतिक चीजों के संग्रह के चक्कर
में नहीं पड़ता। दूसरे ‘और’ के प्रयोग में संसार की विशिष्टता को बताया गया है।
संसार में आम व्यक्ति सांसारिक सुख-सुविधाओं को अंतिम लक्ष्य मानता है। यह
प्रवृत्ति कवि की विचारधारा से अलग है। तीसरे ‘और’ का प्रयोग ‘संसार और कवि में
किसी तरह का संबंध नहीं’ दर्शाने के लिए किया गया है।
प्रश्न 4:
शीतल वाणी में आग’ के होने का क्या अभिप्राय
हैं?
अथवा
‘शीतल
वाणी में आग लिए फिरता हूँ’-इस कथन से कवि का क्या आशय है?
अथवा
‘आत्मपरिचय’
में कवि के कथन- ‘शीतल वाणी में आग लिए फिरता हूँ’ – का
विरोधाभास स्पष्ट कीजिए।
उत्तर –
कवि ने
यहाँ विरोधाभास अलंकार का प्रयोग किया है। कवि की वाणी यद्यपि शीतल है, परंतु
उसके मन में विद्रोह, असंतोष का भाव प्रबल है। वह समाज की व्यवस्था
से संतुष्ट नहीं है। वह प्रेम-रहित संसार को अस्वीकार करता है। अत: अपनी वाणी के
माध्यम से अपनी असंतुष्टि को व्यक्त करता है। वह अपने कवित्व धर्म को ईमानदारी से
निभाते हुए लोगों को जाग्रत कर रहा है।
प्रश्न 5:
बच्चे किस बात की आशा में नीड़ों से झाँक रहे
होंगे?
उत्तर –
पक्षी दिन
भर भोजन की तलाश में भटकते फिरते हैं। उनके बच्चे घोंसलों में माता-पिता की राह
देखते रहते हैं कि मातापिता उनके लिए दाना लाएँगे और उनका पेट भरेंगे। साथ-साथ वे
माँ-बाप के स्नेहिल स्पर्श पाने के लिए प्रतीक्षा करते हैं। छोटे बच्चों को
माता-पिता का स्पर्श व उनकी गोद में बैठना, उनका प्रेम-प्रदर्शन भी असीम
आनंद देता है। इन सबकी पूर्ति के लिए वे नीड़ों से झाँकते हैं।
प्रश्न 6:
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है- की आवृति से कविता
की किस विशेषता का पता चलता है?
उत्तर –
‘दिन जल्दी-जल्दी ढलता है’-की
आवृत्ति से यह प्रकट होता है कि लक्ष्य की तरफ बढ़ते मनुष्य को समय बीतने का पता
नहीं चलता। पथिक लक्ष्य तक पहुँचने के लिए आतुर होता है। इस पंक्ति की आवृत्ति समय
के निरंतर चलायमान प्रवृत्ति को भी बताती है। समय किसी की प्रतीक्षा नहीं करता।
अत: समय के साथ स्वयं को समायोजित करना प्राणियों के लिए आवश्यक है।
कविता के आस-पास
संसार में कष्टों को सहते हुए भी खुशी और
मस्ती का माहौल कैसे पैदा किया जा सकता है?
उत्तर –
सामाजिक
प्राणी होने के नाते मनुष्य हर संबंध का निर्वाह करता है। उसे जीवन में अनेक तरह
के कष्टों का सामना करना पड़ता है। कष्ट सहना मानव की नियति है। सुख-दुख समय के
अनुसार आते-जाते रहते हैं। मनुष्य को दुख से परेशान नहीं होना चाहिए क्योंकि दुखों
के बिना सुख की सच्ची अनुभूति नहीं पाई जा सकती। अत: मनुष्य को संतुलित तथा
सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाकर जीवन को उल्लासपूर्ण बनाना चाहिए। निरंतर काम में लगे
रहकर कष्टों को भुलाया जा सकता है।
अन्य हल प्रश्न
लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1:
‘आत्मपरिचय’
कविता में कवि हरिवंश
राय बच्चन ने अपने व्यक्तित्व के किन पक्षों को उभारा है?
उत्तर –
‘आत्मपरिचय’
कविता में कवि हरिवंश राय बच्चन ने अपने व्यक्तित्व के निम्नलिखित पक्षों को उभारा
है-
कवि अपने जीवन में मिली आशाओं-निराशाओं से
संतुष्ट है।
वह (कवि) अपनी धुन में मस्त रहने वाला व्यक्ति
है।
कवि संसार को मिथ्या समझते हुए हानि-लाभ, यश-अपयश, सुख-दुख
को समान समझता है।
कवि संतोषी प्रवृत्ति का है। वह वाणी के
माध्यम से अपना आक्रोश प्रकट करता है।
प्रश्न 2:
‘आत्मपरिचय’
कविता पर प्रतिपाद्य लिखिए।
उत्तर –
‘आत्मपरिचय’ कविता के रचयिता का
मानना है कि स्वयं को जानना दुनिया को जानने से ज्यादा कठिन है। समाज से व्यक्ति
का नाता खट्टा-मीठा तो होता ही है। संसार से पूरी तरह निरपेक्ष रहना संभव नहीं।
दुनिया अपने व्यंग्य-बाण तथा शासन-प्रशासन से चाहे जितना कष्ट दे, पर
दुनिया से कटकर मनुष्य रह भी नहीं पाता क्योंकि उसकी अपनी अस्मिता, अपनी
पहचान का उत्स,
उसका
परिवेश ही उसकी दुनिया है। वह अपना परिचय देते हुए लगातार दुनिया से अपने द्विधात्मक
और द्वंद्वात्मक संबंधों का मर्म उद्घाटित करता चलता है। वह पूरी कविता का सार एक
पंक्ति में कह देता है कि दुनिया से मेरा संबंध प्रीतिकलह का है, मेरा
जीवन विरुद्धों का सामंजस्य है।
प्रश्न 3:
“दिन
जल्दी – जल्दी ढलता है। कविता का उद्देश्य बताइए।
उत्तर –
यह गीत
प्रसिद्ध कवि हरिवंश राय बच्चन की कृति निशा-निमंत्रण से उद्धृत है। इस गीत में
कवि प्रकृति की दैनिक परिवर्तनशीलता के संदर्भ में प्राणी-वर्ग के धड़कते हृदय को
सुनने की काव्यात्मक कोशिश को व्यक्त करता है। किसी प्रिय आलंबन या विषय से भावी
साक्षात्कार का आश्वासन ही हमारे प्रयास के पगों की गति में चंचलता यानी तेजी भर
सकता है। इससे हम शिथिलता और फिर जड़ता को प्राप्त होने से बच जाते हैं। यह गीत इस
बड़े सत्य के साथ समय के गुजरते जाने के एहसास में लक्ष्य-प्राप्ति के लिए कुछ कर
गुजरने का जज्बा भी लिए हुए है।
प्रश्न 4:
‘आत्मपरिचय’
कविता को दृष्टिगत
रखते हुए कवि के कथ्य को अपने शब्दों में प्रस्तुत कीज।
उत्तर –
‘आत्मपरिचय’ कविता में कवि कहता
है कि यद्यपि वह सांसारिक कठिनाइयों से जूझ रहा है, फिर भी वह
इस जीवन से प्यार करता है। वह अपनी आशाओं और निराशाओं से संतुष्ट है। वह संसार से
मिले प्रेम व स्नेह की परवाह नहीं करता, क्योंकि संसार उन्हीं लोगों की
जयकार करता है जो उसकी इच्छानुसार व्यवहार करते हैं। वह अपनी धुन में रहने वाला
व्यक्ति है। कवि संतोषी प्रवृत्ति का है। वह अपनी वाणी के जरिये अपना आक्रोश
व्यक्त करता है। उसकी व्यथा शब्दों के माध्यम से प्रकट होती है तो संसार उसे गाना
मानता है। वह संसार को अपने गीतों, द्वंद्वों के माध्यम से प्रसन्न
करने का प्रयास करता है। कवि सभी को सामंजस्य बनाए रखने के लिए कहता है।
प्रश्न 5:
कौन-सा विचार दिन ढलने के बाद लौट रहे पंथी
के कदमों को धीमा कर देता हैं? ‘बच्चन’ के गीत के आधार पर उत्तर दीजिए।
उत्तर –
कवि एकाकी
जीवन व्यतीत कर रहा है। शाम के समय उसके मन में विचार उठता है कि उसके आने के
इंतजार में व्याकुल होने वाला कोई नहीं है। अत: वह किसके लिए तेजी से घर जाने की
कोशिश करे। शाम होते ही रात हो जाएगी और कवि की विरह-व्यथा बढ़ने से उसका हृदय
बेचैन हो जाएगा। इस प्रकार के विचार आते ही दिन ढलने के बाद लौट रहे पंथी के कदम
धीमे हो जाते हैं।
प्रश्न 6:
यदि मंजिल दूर हो तो लोगों की वहाँ पहुँचने की मानसिकता
कैसी होती है?
उत्तर –
मंजिल दूर
होने पर लोगों में उदासीनता का भाव आ जाता है। कभी-कभी उनके मन में निराशा भी आ
जाती है। मंजिल की दूरी के कारण कुछ लोग घबराकर प्रयास करना छोड़ देते हैं। कुछ
व्यर्थ के तर्क-वितर्क में उलझकर रह जाते है। मनुष्य आशा व निराशा के बीच झूलता
रहता है।
प्रश्न 7:
कवि को संसार अपूर्ण क्यों लगता है?
उत्तर –
कवि
भावनाओं को प्रमुखता देता है। वह सांसारिक बंधनों को नहीं मानता। वह वर्तमान संसार
को उसकी शुष्कता एवं नीरसता के कारण नापसंद करता है। वह बार-बार वह अपनी कल्पना का
संसार बनाता है तथा प्रेम में बाधक बनने पर उन्हें मिटा देता है। वह प्रेम को
सम्मान देने वाले संसार की रचना करना चाहता है।
प्रश्न 8:
निम्नलिखित पद्य के अंश
को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
मैं स्नेह-सुरा का पान किया करता हूँ,
मैं कभी न जग का ध्यान किया करता हूँ,
जग पूछ रहा उनको, जो
जग की गाते,
मैं अपने मन का गान किया करता हूँ।
मैं निज उर के उद्गार लिए फिरता हूँ.
मैं निज उर के उपहार लिए फिरता हूँ.
है यह अपूर्ण संसार न मुझको भाता
मैं स्वप्नों का संसार लिए फिरता हूँ।
(क)
कवि ने ‘स्नेह’ को ‘सुरा’ क्यों कहा है? संसार के प्रति उसके नकारात्मक दृष्टिकोण का क्या कारण है?
(ख)
संसार किनको महत्व
देता है? कवि
को वह महत्व क्यों नहीं दिया जाता?
(ग)
‘उद्गार’ और ‘उपहार’ कवि को क्यों प्रिय हैं?
(घ)
आशय स्पष्ट कीजिए।
है यह अपूर्ण संसार न मुझको भाता
मैं स्वप्नों का संसार लिए फिरता हूँ।
उत्तर –
(क)
कवि ने ‘स्नेह’ को ‘सुरा’ इसलिए कहा है क्योंकि वह प्रेम की मादकता में डूब जाता
है। इस मादकता के कारण उसे सांसारिक कष्टों की परवाह नहीं रह जाती।
(ख)
संसार उन लोगों को महत्त्व देता है जो सांसारिकता में डूबे रहते हैं और सांसारिकता
को ही सर्वोत्तम मानते हैं। कवि सांसारिकता से दूर रहता है, इसलिए
संसार कवि को महत्व नहीं देता।
(ग)
कवि को उद्गार इसलिए पसंद है क्योंकि इस उद्गार में उसके मन के भाव समाए हुए हैं, जिन्हें
वह दुनिया को देना चाहता है। उसे उपहार इसलिए पसंद हैं, क्योंकि
उसके हृदय रूपी उपहार में कोमल भाव समाए हुए हैं।
(घ)
आशय- कवि को लगता है कि बाहरी संसार प्रेम
के बिना अपूर्ण है। संसार में प्रेम का अभाव है, इसलिए
संसार उसे नहीं भाता। कवि के मन में प्रेम से परिपूर्ण संसार
का एक सपना है जिसे वह साकार रूप देना चाहता है।
प्रश्न 9:
निम्नलिखित काव्य-पक्तियों के काव्य-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए-
मुझसे मिलने को कौन विकल?
मैं होऊँ किसके हित चचल?
यह प्रश्न शिथिल करता पग को, भरता उर में विह्वलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!
उत्तर –
भावसौंदर्य–
शाम निकट
जानकर प्राणी अपने-अपने घर आने को उद्यत हैं, क्योंकि उनके घर पर कोई-न-कोई उनकी प्रतीक्षा
कर रहा होता है। पर कवि के आने के इंतजार में कोई प्रतीक्षारत नहीं है, इसलिए
उसके कदम शिथिल हैं।
शिल्पसौंदर्य
प्रश्न अलंकार का प्रयोग है।
‘जल्दी-जल्दी’
में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
सरल, सहज, प्रवाहमयी
भाषा भावाभिव्यक्ति के अनुकूल है।
तत्सम शब्दों का प्रयोग है।
प्रश्न 10:
‘दिन
जल्दी-जल्दी ढलता है’ कविता का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर –
‘दिन जल्दी-जल्दी ढलता है’ कविता
प्रेम की महत्ता पर प्रकाश डालती है। प्रेम की तरंग ही मानव के जीवन में उमंग और
भावना की हिलोर पैदा करती है। प्रेम के कारण ही मनुष्य को लगता है कि दिन
जल्दी-जल्दी बीता जा रहा है। इससे अपने प्रियजनों से मिलने की उमंग से कदमों में
तेजी आती है तथा पक्षियों के पंखों में तेजी और गति आ जाती है। यदि जीवन में प्रेम
हो तो शिथिलता आ जाती है।
स्वयं करें
कवि का कहना है कि उसने स्नेह-सुरा का पान
किया है। इस पान का उस पर क्या प्रभाव पड़ा है?
कवि बच्चन को कैसा संसार अच्छा नहीं लगता, और
क्यों?
‘सत्य
किसी ने नहीं जाना’-कवि ने ऐसा क्यों कहा है?
कवि ने किस पृथ्वी को ठुकराने की बात कही है? कवि के कथन से आप कितना सहमत हैं
और क्यों?
राही दिन ढलने से पूर्व ही मंजिल पर पहुँच
जाना चाहता है,
ऐसा
क्यों?
चिड़िया के परों में चंचलता आने के क्या-क्या
कारण हो सकते हैं?
उस प्रश्न का उल्लेख कीजिए जो कवि-मन को विहवलता
से भर देता है। इससे उस पर क्या प्रभाव पड़ता है?
निम्नलिखित काव्यांशों के आधार पर पूछे गए
प्रश्नों के उत्तर दीजिए
मैं निज उर के उद्गार लिए फिरता हूँ
मैं निज उर के उपहार लिए फिरता हूँ,
है यह अपूर्ण संसार न मुझको भाता
मैं स्वप्नों का संसार लिए फिरता हूँ।
(क)
भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ख)
अंतिम पंक्ति का
आशय स्पष्ट कीजिए।
(ग)
काव्यांश की भाषिक – शिल्प संबंधी विशेषताएँ लिखिए-
बच्चे प्रत्याशा में होंगे
नीड़ों से झाँक रहे होंगे
यह ध्यान परो में चिड़ियों के भरता कितनी
चंचलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!
(क)
काव्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए ।
(ख)
काव्य की भाषा संबंधी दो विशेषताएँ लिखिए।
(ग)
अलंकार एवं बिंब विधान स्पष्ट कीजिए।
Subscribe to:
Posts (Atom)